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हमारे बच्चे - हमारा भविष्य

स्वामी चिन्मयानंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9696

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वर्तमान में कुछ काल और जुड़ जाने पर भविष्य बन जाता है। वर्तमान तथा कुछ समय ही भविष्य है।

इतिहास प्रमाण है कि पृथ्वी पर अलग-अलग देश और काल में अनेकों संस्कृतियों का जन्म हुआ। ये संस्कृतियां लहरों की तरह से उठीं, कुछ समय बनी रहीं, चमकीं और बाद में लहरो की तरह ही विलीन भी हो गयीं। काल रूपी दैत्य सबका भक्षण कर गया और यह सब इतिहास की ही बातें रह गईं लेकिन एक संस्कृति आज तक इस काल रूपी दैत्य से अप्रभावित रही है और यह है इस पृथ्वी की सबसे प्रथम संस्कृति वैदिक संस्कृति जो अपने नाम को सार्थक करती हुई 'सनातन धर्म' के नाम से जानी जाती रही है। यह सबसे पुरानी संस्कृति होने के साथ साथ आज भी जीवित है। अन्य लहरों की तरह इस लहर में भी उतार चढ़ाव आये लेकिन यह एक विलक्षण लहर रही। जब भी यह पतन की ओर जाती हुई प्रतीत होती थी उस समय कोई न कोई महापुरुष आते और बदलती हुई सामाजिक परिस्थितियों में जीवन के इन सनातन वैदिक सिद्धान्तों की प्रयोगिता दिखाकर इसे सदा जीवित रखते रहे।

हमारे बच्चे - हमारा भविष्य

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