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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

वकालत के कुछ स्मरण


हिन्दुस्तान आने के बाद मेरे जीवन की धारा किस तरह प्रवाहित हुई, इसका वर्णन करने से पहले मैंने दक्षिण अफ्रीका के अपने जीवन के जिस भाग को जान-बूझकर छोड़ दिया था, उसमें से कुछ यहाँ देना आवश्यक मालूम होता है। कुछ वकील मित्रों ने वकालत के समय के और वकील के नाते मेरे संस्मरणो की माँग की है। ये संस्मरण इतने अधिक है कि उन्हें लिखने बैठूँ, तो उन्ही की एक पुस्तक तैयार हो जाय। ऐसे वर्णन मेरी अंकित मर्यादा के बाहर जाते है। किन्तु उनमें से कुछ, जो सत्य से संबन्ध रखनेवाले है, यहाँ देना शायद अनुचित नहीं माना जायेगा।

जैसा कि मुझे याद है, मैं यह तो बता चुका हूँ कि वकालत के धंधे में मैंने कभी असत्य का प्रयोग नहीं किया और मेरी वकालत का बडा भाग केवल सेवा के लिए ही अर्पित था और उसके लिए जेबखर्च के अतिरिक्त मैं कुछ नहीं लेता था। कभी कभी जेबखर्च भी छोड़ देता था। मैंने माना था कि इतना बताना इस विभाग के लिए पर्याप्त होगा। पर मित्रों की माँग उससे आगे जाती है। वे मानते है कि यदि मैं सत्यरक्षा के प्रसंगो का थोडा भी वर्णन दे दूँ, तो वकीलों को उसमें से कुछ जानने को मिल जायेगा।

विद्यार्थी अवस्था में भी में यह सुना करता था कि वकालक का धंधा झूठ बोले बिना चल ही नहीं सकता। झूठ बोलकर मैं न तो कोई पद लेना चाहता था और न पैसा कमाना चाहता था। इसलिए इन बातो का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।।

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