लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540

Like this Hindi book 0

धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...

ईश्वर की छाया था वह

अपनी कमजोर राजनीतिक स्थिति के बावजूद हुमाऊँ पादशाहत (राजत्व) के बारे में इस तुर्की मान्यता पर ही बल देता रहा कि पादशाह खुदा की परछाईं होता है (हज़रते पादशाह, जिल्ले इलाही)। उसने शाही प्रभुसत्ता को न केवल दैवी अधिकार माना अपितु उसे बादशाह की ऐसी व्यक्तिगत संपत्ति भी समझा जिसे वह अपनी मन-मर्जी के अनुसार किसी को भी हस्तांतरित कर सकता था।

अकबर के शासन काल में पादशाहत की संकल्पना न केवल विस्तार पाकर पूर्णता और निश्चिंतता पर पहुंची अपिुत उसे नया और विशिष्ट महत्व भी प्राप्त हुआ। दैवी उत्पत्ति के सिद्धांत और खुदा की परछाईं के दावों के साथ-साथ अकबर की भी यह मान्यता थी कि पादशाहत मुस्लिम समुदाय या अमीर वर्ग की ओर से भेंट नहीं है। उसके अनुसार ‘खिलाफत’ (आध्यात्मिक या रूहानी प्रभुसत्ता) और पादशाहत (पार्थिव या राजनीतिक प्रभुसत्ता) अर्थात ‘सल्तनते-हकीकी व मजूज़ी’ दोनों ही अकबर को जन्मसिद्ध अधिकार तथा वंश परंपरा के साथ-साथ योग्यता के आधार पर मिली थीं।

अबुल फज़ल ने पादशाहत के बारे में जो विचार व्यक्त किए उससे अकबर की अपनी संकल्पना पुष्ट हुई। अबुल फज़ल के अनुसार पादशाहत खुदा से निकलने वाली रोशनी (फर्र-ए-इज़्दी) है जिसे खुद उसने ही पृथ्वी पर भेजा है, इसलिए उसमें ऐसी सहज विशेषताएं हैं जो उस रोशनी को धारण करने वाले व्यक्ति में खुद व खुद प्रवेश कर जाती हैं। उसके अनुसार एक आदर्श पादशाह खुदा की परछाईं होता है और चरम तथा अविभाज्य शक्ति का उपयोग करते हुए अपने अधीनस्थ राज्य या इलाकों में ‘एक नियम, एक नियामक, एक मार्गदर्शक, एक लक्ष्य और एक विचार’ के अनुसार अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करता है। पादशाह को चाहिए कि वह अपने को अपनी प्रजा का पिता समझे और उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखते हुए प्रजा-पालक बना रहे। कौटिल्य ने भी अर्थशास्त्र में एक ऐसे विराट साम्राज्य की स्थापना की बात कही है जिसकी शासन-सत्ता निरंकुश हो और जिसके अतुल बल-वैभव के समक्ष किसी को भी सिर उठाने का साहस न हो। इस नीति के अंतराल में लोक-कल्याण की एक व्यापक भावना विद्यमान थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book