लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540

Like this Hindi book 0

धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...


कुछ दिनों बाद नीलाब (सिंधु) के तट पर शिविर डाला। यहां बैरम खां उससे आ मिला। सिंधु नदी को पार कर हुमाऊँ ने बिना किसी कठिनाई के शेरशाह द्वारा निर्मित रोहतास दुर्ग जीत लिया। अफगानों को पराजित करते हुए, छोटे बड़े लोगों से भेंटें स्वीकार करते हुए लाहौर पहुंचकर उसे भी जीत लिया। अफगान बुरी तरह परास्त हुए और भाग गए। शेरशाह का भतीजा सिकंदर सूर परास्त होकर शिवालिक की पहाड़ियों में चला गया।

नवम्बर 1555 में हुमाऊँ ने पंजाब का शासन 13 वर्षीय अकबर को सौंप दिया और बैरम खां को उसका अताबेक (संरक्षक) नियुक्त कर दिया। खुद वहां से आगे चल दिया। सरहिंद की विजय ने हुमाऊँ के लिए दिल्ली के फाटक खोल दिए। उसने अपने पिता के खोए हुए राज्य को पुनः प्राप्त कर लिया। परंतु राज का सुख वह ज्यादा दिन नहीं भोग पाया।

24 जनवरी 1556 की बात है। ठंडी हवा का मज़ा लेने के लिए वह कुतुबखाने (पुस्तकालय) की छत पर चढ़ गया। कहते कि उस समय वह अफीम की पीनक में था। शाम को जब वह नीचे उतर रहा था और सीढ़ी के दूसरे डंडे पर था तभी उसे अजान की आवाज सुनाई दी। उसने जहां का तहां बैठना चाहा। बैठते-बैठते उसका एक पैर जामे में फंस गया जिससे वह दूसरे पैर को जमा नहीं पाया और सिर के बल नीचे गिर गया।

उसकी दाईं कनपटी में चोट आई। उसने फौरन ही एक ख़त अकबर के नाम लिखवाया और नजरे शेख कुली के हाथों भेज दिया। वह जानता था कि अब बचेगा नहीं, लेकिन अकबर के लिए जीना चाहता था। उसने बाबर का यह मिस्रा पढ़ा-‘जो दहलीज तक मौत की जा चुका है। वही कीमते जिंदगी जानता है।’ चोट बड़ी खतरनाक सिद्ध हुई। 26 जनवरी 1556 को उसका इंतकाल हो गया।

0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book