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जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू

अरस्तू

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10541

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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…



सुकरात और अफलातून (प्लेटो) की तरह अरस्तू तत्वज्ञान की समस्याओं में नहीं उलझता था। वह ज्यादातर प्रकृति की चीजों के निरीक्षण और उसके तौर को समझने में लगा रहता था। इसको प्रकृति दर्शन या आजकल ज्यादातर विज्ञान कहते हैं।                                                     

- जवाहर लाल नेहरू


अरस्तू की मुखाकृति विकृत थी पर उसकी प्रतिभा शारीरिक दोष की भरपाई कर देती थी।                 

- प्रेम प्रियरे


अरस्तू सत्य के दार्शनिक थे।

- प्लेटो


वह वाग्मिता, वैश्विक ज्ञान, प्रत्युत्पन्नता, आविष्कार के प्रति आग्रही, विचारों की उर्वरता के धनी थे।

- सिसरो


वे वैश्विक ज्ञान के प्रोफसर थे।                  

- जॉन ड्राइडेन


कर्म नैतिक तभी हो सकता है जबकि स्वतंत्र इच्छा से नहीं बल्कि बुद्धि से अनुशासित इच्छा द्वारा उस शुभ कर्म का चुनाव किया गया हो। सृष्टि निरंतर परिवर्तनशील है, इसमें बार-बार खोज करते रहना पड़ेगा। कोई अकाट्य सत्य निर्धारित नहीं हो सकता।

- अरस्तू

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