जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
बड़े साहित्यकारों से उनके संबंध बनने शुरू हो गए। पहले पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी, फिर उन्हीं के माध्यम से पं. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ से घनिष्ठ संबंध स्थापित हो गए। निराला जी ने लखनऊ की पत्रिका ‘माधुरी’ के फरवरी 1938 के अंक में प्रदीप पर लेख लिखकर उनकी काव्य-प्रतिभा पर स्वर्ण-मुहर लगा दी। निराला जी ने लिखा- ‘‘आज जितने कवियों का प्रकाश हिंदी जगत में फैला हुआ है उनमें ‘प्रदीप’ का अत्यंत उज्ज्वल और स्निग्ध है। हिंदी के हृदय से प्रदीप की दीपक रागिनी कोयल और पपीहे के स्वर को भी परास्त कर चुकी है। इधर 3-4 साल से अनेक कवि सम्मेलन प्रदीप की रचना और रागिनी से उद्भासित हो चुके हैं।’
निराला जी की प्रशंसा पढ़कर प्रदीप ने विनम्रता से कहा, ‘‘निराला जैसे महान व्यक्ति द्वारा मेरी प्रशंसा से लगता है मैं कवि बन जाऊंगा।’’ इससे प्रदीप को वास्तव में नई रचनात्मक ऊर्जा प्राप्त हुई। कवि सम्मेलनों में अपनी धाक जमाकर प्रदीप पं. गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ जैसे काव्यगुरु के जब स्नेह पात्र बन गए तब इसमें कोई संशय ही नहीं रहा कि निराला जो कहा करते थे कि ‘मेरे बाद प्रदीप ही छायावाद का महान उत्तराधिकारी बनेगा’ सो भविष्यवाणी यथार्थ बनकर ही रहेगी।
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