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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


अप्रिय-दर्शन सुकरात कभी वेश-भूषा के प्रति सजग नहीं रहे- इसका कारण यह था कि, भारतीय ऋषियों की तरह, वे मानते थे कि शरीर की उपेक्षा करके ही हम अशरीरी आत्मा को प्राप्त कर सकते हैं। हमारा शरीर ही समस्त बुराइयों और झगड़े की जड़ है। इसका यह तात्पर्य नहीं कि हमें आत्महत्या करके शरीर त्याग देना चाहिए। हां, हमें शरीर से कम-से-कम सम्पर्क रखना चाहिए और आत्मा से अधिक से अधिक जुड़ना चाहिए। लेकिन सामाजिक भोजों आदि के अवसरों पर सुकरात अपने वस्त्रों पर ध्यान देते थे। प्लेटो लिखता है कि एक मित्र के यहां भोज के निमंत्रण पर सुकरात अच्छी तरह नहा-धोकर, स्वच्छ वस्त्र और जूते पहनकर गए थे।

एथेंस की भूमध्यसागरीय जलवायु में घर के बाहर जीवन बिताना आनंददायक लगता था। अतः लोग अधिकांश समय सड़कों, गलियों, बाजारों में बिताते थे। दास प्रथा प्रचलित होने के कारण उन्हें अवकाश का समय अधिक मिलता था। वाद विवाद, तर्क वितर्क, गप-शप उनके जीवन के अभिन्न अंग थे। नागरिकों की वास्तविक शिक्षा इन्हीं सार्वजनिक स्थलों पर होती थी जो मुक्त विद्यालयों की तरह थे। पर यह विद्यालय बड़ा अनोखा था। यहां प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं देना पड़ता, बैठकर गुरु के उपदेश नहीं सुनने पड़ते। अनिवार्य था गुरु से प्रश्न करना, उनसे वाद-विवाद करना और स्वयं में निहित सत्य का साक्षात्कार करना।

सुकरात अपनी तुलना अपनी मां फेनारत से करते जो एक दाई थीं। सुकरात कहते थे कि जिस तरह मेरी मां महिलाओं को बच्चा पैदा करने में सहायता करती हैं उसी तरह मैं भी व्यक्ति में अंतर्निहित ज्ञान को बाहर निकालने में सहायता देता हूं। इसी से एथेंस के लोग सुकरात के पास खिंचे चले आते। नवयुवक तो चुम्बक की तरह उनसे चिपके रहते।

सुकरात कभी व्याख्यान नहीं देते। प्रश्नों के माध्यम से विषय का प्रतिपादन करते, वह स्वतः संप्रेषणीय बन जाता है। देखें क्या थी सुकरात की पद्धति !

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