लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548

Like this Hindi book 0

पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...



सदाचार के मायने

सुकरात मानते थे कि जीने का सबसे उम्दा तरीका धन के पीछे भागने के बजाय आत्म विकास पर जोर देना है। वे सदैव लोगों को सच्ची सामाजिकता पर और मित्रता के भाव पर विचार करने को कहते थे क्योंकि वे अनुभव करते थे कि सामान्य जन के रूप में रहने का यही तरीका है। वे इसी धारणा को जीते थे और इसी के तहत उन्होंने मुत्यु दंड स्वीकार कर लिया और मित्रों के हठ करने पर भी एथेंस से पलायन नहीं किया। वे समाज की इच्छा के विरुद्ध नहीं गए क्योंकि उनकी ख्याति युद्धों के लड़ने वाले एक अप्रतिम योद्धा की थी।

सुकरात के उपदेशों में यह विचार अंतर्निहित रहता था कि हर मनुष्य में सदाचार के गुण विद्यमान होते हैं। दर्शन और बौद्धिक ज्ञान के लिए सदाचार महत्वपूर्ण गुण है। वे जोर देकर कहते थे कि संपत्तियों में सबसे मूल्यवान सदाचार है क्योंकि उससे शुभ की खोज में आदमी आदर्श जीवन व्यतीत करता है। सत्य अपने अस्तित्व के आवरण में छिपा रहता है और उसे उजागर करना दार्शनिक का काम है।

* *

प्रजातंत्र के विरोधी ?

सुकरात का यह कथन कि ‘‘आदर्श के संसार को केवल विद्वान व्यक्ति ही समझ सकते हैं, अतः दूसरों पर शासन करने वाले व्यक्तियों में दार्शनिक सबसे उपयुक्त है,’’ विवाद के घेरे में रहा है। रिपब्लिक में प्लेटो कहता है कि प्रजातंत्र के संबंध में सुकरात के विचार पारदर्शी नहीं थे। अपनी युवावस्था में उन्होंने एथेंस में प्रजातंत्र का विरोध किया था। इतना ही नहीं, प्लेटो बताता है, वह प्रत्येक उस शासन पद्धति का विरोध करते थे जिसका नेतृत्व दार्शनिकों द्वारा न हो रहा हो। एथेंस की सरकार उनके इस विचार से काफी दूर थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book