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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...



जन्म-कथा

संसार में प्रायः सर्वत्र और सर्वदा महापुरुषों के जन्म की कथाओं में एक बात सर्वसामान्य मिलती है कि उनका जन्म माता-पिता की तपस्या, आराधना, याचना के फलस्वरूप दैवी प्रसाद के रूप में होता है। सुकरात का जन्म भी ऐसे ही हुआ था। वे वरद पुत्र थे।

एथेंस के एक मोहल्ले अलोपेकी में रहने वाले सोफ्रोनिस्कोस प्रस्तर खंडो की सजीव भाव प्रवण मूर्तियां बनाने में सिद्धहस्त थे। पत्नी फेनारत कुशल दाई थीं और नगर की स्त्रियों द्वारा बच्चों को जन्म देने में सहायता करती थीं। दो दशक से अधिक उनके विवाह को हो गए थे पर उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। उनके पड़ोसी और हितैषी क्रेतन ने सोफ्रोनिस्कोस को सलाह दी कि वे स्वयं अपोलो देव की और उनकी पत्नी देवी एथिना की आराधना करें तो उनकी मनोकामना पूरी हो जाएगी।

अपोलो और एथिना के मंदिर पास-पास थे। पति-पत्नी साथ-साथ जाते और देवताओं पर चढ़ाने के लिए कभी आसव, कभी दूध, कभी पकवान, कभी मौसमी फल और फूल ले जाते। उनकी पूजा अर्जना से प्रसन्न होकर देवताओं ने उन्हें पुत्र-लाभ का वरदान दे दिया।

फेनारत गर्भवती हुई। गर्भस्थ शिशु जब कुछ सक्रिय हो चला तो घर की दीवारों को काले रंग से पोत दिया गया जिससे शिशु दुष्ट आत्माओं से सुरक्षित रह सके।

अंततः 469 ई0पू0 में जुलाई के अंतिम दिन, जब देवी एथिना का पर्व मनाया जा रहा था सोफ्रोनिस्कोस और फेनारता का घर खुशियों से भर गया। उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ जो बाद में रत्न सिद्ध हुआ।

शिशु का नाम सुकरात (सोक्रोतीस) रखा गया। पांच वर्ष की अवस्था में गणित, भूमिति और संगीत की शिक्षा प्रारंभ हुई। साथ ही पिता से मूर्ति निर्माण का कौशल भी सीखने लगे। बारह वर्ष की उम्र तक जो कुछ शिक्षकों से सीखना था सीख लिया। फिर पिता का हाथ बटाने लगे।

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