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आराधना

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8338

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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ



मारकर हाथ भव-वारिधि तरो, प्राण


मारकर हाथ भव-वारिधि तरो, प्राण!
गगन में गूँजकर ऐच्छिक करो गान!

दूर हो दुरित, सुख-सुरित फूटे, बहे,
एक अनुभव अनूद्दव हृदय में रहे,
कामना-काम प्रतियाम मानव सहे,
विश्व होकर रहे स्वर्ग का सुस्थान।

अनुद्वेलित हुआ चित्सिन्धु जहाँ है,
मिल रहे हैं, जहाँ, सृष्टि के सभी शय,
बिना जिसके नहीं स्थिति, रहा है विलिय,
वहीं हो सही इस देह का अभियान।

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