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आराधना

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8338

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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ



जय अजेय अप्रमेय


जय अजेय, अप्रमेय
जय जग के परम पार।
जय जीवों के जप के,
तप के, तनु-सूत्रधार।

गरल-कण्ठ हे अकुण्ठ,
बैठक बैकुण्ठ-धाम;
जय शिव, जय विष्णु, जिष्णु,
शङ्कर, जय कृष्ण, राम;
शतविध नमानुबन्ध
बान्धव हे निराकार—
जय अजे, अप्रमेय,
जय जग के परम पार।

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