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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


डाक्टर साहब पेचदार गलियों से निकलते हुए एक बहुत छोटे मकान में दाखिल हुए। मकान की अवस्था देखते ही डाक्टर साहब ने समझ लिया कि इसमें रहनेवालों पर चिरकाल से लक्ष्मीजी का कोप मालूम होता है। उन्होंने मकान के भीतर देखा कि एक छप्पर के नीचे चारपाई पर लड़की की माँ लिहाफ ओढ़े लेटी हुई है। आँगन में नीम का एक पेड़ है। उसके पत्तों से आँगन भर रहा है। मालूम होता है कि कई दिनों से घर में झाड़ू तक नहीं लगाई गई। लड़की ने अपनी माँ की चारपाई के पास पहले से ही एक मूढ़ा बिछा रखा था; क्योंकि उसने अपनी माँ से सुना था कि कोई भी गरीब आदमी डाक्टर साहब के घर से निराश नहीं लौटाया जाता। डाक्टर साहब मूँढे पर बैठ गये। लड़की ने माँ के कान में जोर से आवाज़ दी कि डाक्टर साहब आ गये। माँ ने मुँह पर से लिहाफ उठाया।

यद्यपि बीमारी की तकलीफ के कारण उसके चेहरे पर उदासी छाई थी, तथापि उस उदासी के अन्दर से भी डाक्टर साहब ने उसके हृदय की पवित्रता और मानसिक दृढ़ता की निर्मल किरणों को छनते हुए देखा। उन्होंने यह भी जान लिया कि भगवान् के अदृष्ट कोप से यद्यपि वह रोगिणी इस छोटे से मकान में टूटे-फूटे सामान के साथ रहने को विवश कर दी गई; किन्तु एक दिन यह जरूर अच्छे घर और बड़े सम्मान के साथ किसी सुयोग्य पति के हृदय की अधिकारिणी रही होगी। रोगिणी की अवस्था चालीस वर्ष से ऊपर थी। रोग और गरीबी ने मिलकर उसके मुख-कोमल को मलिन करने में कोई कसर न छोड़ी थी; परन्तु उसके चेहरे पर जिस स्वर्गीय शांति का आधिपत्य था, उसे विपत्ति नहीं हटा सकी थी। रोगिणी के शांत-पूर्ण चेहरे को देखते ही डाक्टर के हृदय में उसके विषय में बड़ी श्रद्धा उत्पन्न हो गई। उन्होंने अपने स्वभाव सिद्ध मीठे स्वर से पूछा–‘माँजी, आपको क्या तकलीफ है? धीरे-धीरे अपनी तबियत का हाल कह सुनाइए।’

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