लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

264 पाठक हैं

गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


राजा बाबू ने उत्तर दिया–‘माँजी, मैं आपकी आज्ञा सहर्ष स्वीकारा करता हूँ। मैं आपकी कन्या को सन्तानवत् रक्खूँगा। मेरे घर में कोई बालक नहीं। माताजी सरला को पाकर यथार्थ में बहुत प्रसन्न होंगी। समय आने पर मैं इसका विवाह भी कर दूँगा, पर आप इतना निराश क्यों होती हैं। मुझे आशा है, आप अच्छी हो जायँगी।’

इसके बाद डाक्टर साहब ने रोगिणी की नब्ज आदि देखी। देखने से डाक्टर साहब को मालूम हो गया कि रोहिणी का रोग-विषयक बयान बहुत कुछ ठीक है।

उसी दिन शाम को रोगिणी इस संसार में चल बसी।

विस्मृति भी बड़े काम की चीज़ है। यह न होती, तो मनुष्य का जीवन बहुत बुरा हो जाता। जन्म से लेकर आज तक हमको जिन-जिन दुखों, क्लेशों और संकटों का सामना करना पड़ा है, सब-के-सब यदि हर समय हमारी आँखों के सामने खड़े रहते, तो हमारा जीवन भयानक हो जाता। अकेली विस्मृति ही उनसे हमारी रक्षा करती है।

सरला ने मातृ-वियोग को सह लिया। माता की याद धीरे-धीरे विस्मृति के गर्भ में छिपने लगी। अब उसकी जीवन पुस्तक का एक नया, पर चमचमाता हुआ, पृष्ठ खुला। छोटे से झोपड़ें से निकलकर अब महल को मात करनेवाले डाक्टर राजा बाबू के मकान में प्रवेश किया। माता की छत्रछाया उठ गई, डाक्टर की वृद्धा माता की गोद का आश्रय मिला; पर उसमें भी उसने वही स्नेह-रस-परिप्लुत अभय दान पाया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book