कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
धन और धरती के बीच आदिकाल से एक आकर्षण है। धरती में साधारण गुरुत्वाकर्षण के अलावा एक ख़ास ताकत होती है, जो हमेशा धन को अपनी तरफ़ खींचती है। सूद और तमस्सुक और व्यापार, यह दौलत की बीच की मंजि़लें हैं, ज़मीन उसकी आख़िरी मंजि़ल है। ठाकुर प्रद्युम्न सिंह की निगाहें बहुत अर्से से एक बहुत उपजाऊ मौज़े पर लगी हुई थीं। लेकिन बैंक का एकाउण्ट कभी हौसले को क़दम नहीं बढ़ाने देता था। यहाँ तक कि एक दफ़ा उसी मौजे का जमींदार एक कत्ल के मामले में पकड़ा गया। उसने सिर्फ़ रस्मों-रिवाज़ के माफ़िक़ एक आसामी को दिन भर धूप और जेठ की जलती हुई धूप में खड़ा रखा था लेकिन अगर सूरज की गर्मी या जिस्म की कमज़ोरी या प्यास की तेजी उसकी जानलेवा बन जाय तो इसमें ज़मींदार की क्या ख़ता थी। यह शहर के वकीलों की ज्यादती थी कि कोई उसकी हिमायत पर आमाद न हुआ या मुमकिन है ज़मींदार के हाथ की तंगी को भी उसमें कुछ दखल हो। बहरहाल, उसने चारों तरफ़ से ठोकरें खाकर ठाकुर साहब की शरण ली। मुकदमा निहायत कमज़ोर था। पुलिस ने अपनी पूरी ताकत से धावा किया था और उसकी कुमक के लिए शासन और अधिकार के ताज़े से ताज़े रिसाले तैयार थे। ठाकुर साहब अनुभवी सँपेरों की तरह साँप के बिल में हाथ नहीं डालते थे लेकिन इस मौके पर उन्हें सूखी मसलहत के मुकाबले में अपनी मुरादों का पल्ला झुकता हुआ नज़र आया। जमींदार को इत्मीनान दिलाया और वकालतनामा दाख़िल कर दिया और फिर इस तरह जी-जान से मुकदमे की पैरवी की, कुछ इस तरह जान लड़ायी कि मैदान से जीत का डंका बजाते हुए निकले। जनता की ज़बान इस जीत का सेहरा उनकी क़ानूनी पैठ के सर नहीं, उनके मर्दाना गुणों के सर रखती है क्योंकि उन दिनों वकील साहब नज़ीरों और दफ़ाओं की हिम्मत तोड़ पेंचीदगियों में उलझने के बजाय दंगल की उत्साहवर्द्धक दिलचस्पियों में ज़्यादा लगे रहते थे लेकिन यह बात ज़रा भी यक़ीन करने के काबिल नहीं मालूम होती। ज़्यादा जानकार लोग कहते हैं कि अनार के बमगोलों और सेब और अंगूर की गोलियों ने पुलिस के, इस पुरशोर हमले को तोड़कर बिखेर दिया। ग़रज कि मैदान हमारे ठाकुर साहब के हाथ रहा। ज़मींदार की जान बची। मौत के मुँह से निकल आया। उनके पैरों पर गिर पड़ा और बोला—ठाकुर साहब, मैं इस क़ाबिल तो नहीं कि आपकी खिदमत कर सकूँ। ईश्वर ने आपको बहुत कुछ दिया है लेकिन कृष्ण भगवान् ने ग़रीब सुदामा के सूखे चावल खुशी से क़बूल किए थे। मेरे पास बुजुर्गों की यादगार छोटा-सा वीरान मौज़ा है उसे आपकी भेंट करता हूँ। आपके लायक तो नहीं लेकिन मेरी खातिर इसे क़बूल कीजिए। मैं आपका जस कभी न भूलूँगा। वकील साहब फड़क उठे। दो-चार बार निस्पृह बैरागियों की तरह इन्कार करने के बाद इस भेंट को कबूल कर लिया। मुँहमाँगी मुराद मिली।
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