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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


एक रोज़ शाम के वक़्त रोज़ की तरह मैं आनंदवाटिका में सैर कर रहा था और फूलमती सोलहों सिंगार किए, मेरी सुनहरी-रुपहली भेंटो से लदी हुई, एक रेशमी साड़ी पहने बाग की क्यारियों में फूल तोड़ रही थी, बल्कि यों कहो कि अपनी चुटकियो में मेरे दिल को मसल रही थी। उसकी छोटी-छोटी आँखे उस वक़्त हुस्न के नशे के हुस्न में फैल गयी, थीं और उनमें शोखी और मुस्कराहट की झलक़ नज़र आती थी।

अचानक महाराजा साहब भी अपने कुछ दोस्तों के साथ मोटर पर सवार आ पहुँचे। मैं उन्हें देखते ही अगवानी के लिए दौड़ा और आदाब बजा लाया। बेचारी फूलमती महाराजा साहब को पहचानती थी लेकिन उसे एक घने कुंज के अलावा और कोई छिपने की जगह न मिल सकी। महाराजा साहब चले तो हौज की तरफ़ लेकिन मेरा दुर्भाग्य उन्हें क्यारी पर ले चला जिधर फूलमती छिपी हुई थर-थर काँप रही थी।

महाराजा साहब ने उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा और बोले—यह कौन औरत है? सब लोग मेरी ओर प्रश्न-भरी आँखों से देखने लगे और मुझे भी उस वक़्त यही ठीक मालूम हुआ कि इसका जवाब मैं ही दूं वर्ना फूलमती न जाने क्या आफ़त ढा दे। लापरवाही के अंदाज़ से बोला—इसी बाग़ के माली की लड़की है, यहाँ फूल तोड़ने आयी होगी।

फूलमती लज्जा और भय के मारे ज़मीन में धंसी जाती थी। महाराजा साहब ने उसे सर से पाँव तक गौर से देखा और तब संदेहशील भाव से मेरी तरफ़ देखकर बोले—यह माली की लड़की है?

मैं इसका क्या जवाब देता। इसी बीच कम्बख्त दुर्जन माली भी अपनी फटी हुई पाग संभालता, हाथ में कुदाल लिए हुए दौड़ता हुआ आया और सर को घुटनों से मिलाकर महाराज को प्रणाम किया महाराजा ने जरा तेज़ लहजे़ में पूछा—यह तेरी लड़की है?

माली के होश उड़ गए, काँपता हुआ बोला—हुजूर।

महाराज—तेरी तनख्वाह क्या है?

दुर्जन—हुजूर, पाँच रुपये।

महाराज—यह लड़की कुँवारी है या ब्याही?

दुर्जन—हुजूर, अभी कुंवारी है।

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