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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


बेचारी देवकी बैठी रो रही थी। हरिदास ने आकर उसको सान्त्वना दी, और फिर डाक्टर के यहाँ से दवा लाकर दी। थोड़ी देर में मरीज को होश आया, इधर-उधर कुछ खोजती हुई-सी निगाहों से देखा कि जैसे कुछ कहना चाहते हैं और फिर इशारे से लिखने के लिए कागज माँगा। हरिदास ने कागज और पेंसिल रख दी, तो बूढ़े लाला साहब ने हाथों को ख़ूब सम्हालकर लिखा—इन्तजाम दीनानाथ के हाथ में रहे।

ये शब्द हरिदास के हृदय में तीर की तरह लगे। अफ़सोस! अब भी मुझ पर भरोसा नहीं! यानी कि दीनानाथ मेरा मालिक होगा और मैं उसका गुलाम बनकर रहूँगा! यह नहीं होने का। काग़ज लिए देवकी के पास आये और बोले—लालाजी ने दीनानाथ को मैनेजर बनाया है, उन्हें मुझ पर इतना एतबार भी नहीं हैं, लेकिन मैं इस मौके को हाथ से न जाने दूँगा। उनकी बीमारी का अफ़सोस तो जरूर है मगर शायद परमात्मा ने मुझे अपनी योग्यता दिखलाने का यह अवसर दिया है। और इससे मैं ज़रूर फायदा उठाऊँगा। कारखाने के कर्मचारियों ने इस दुर्घटना की ख़बर सुनी तो बहुत घबराये। उनमें कई निकम्मे, बेमसरफ़ आदमी भरे हुए थे, जो सिर्फ़ खुशामद और चिकनी-चुपड़ी बातों की रोटी खाते थे। मिस्त्री ने कई दूसरे कारखानों में मरम्मत का काम उठा लिया था रोज किसी-न-किसी बहाने से खिसक जाता था। फायरमैन और मशीनमैन दिन को झूठ-मूठ चक्की की सफाई में काटते थे और रात को काम करके ओवर टाइम की मज़दूरी लिया करते थे। दीनानाथ जरूर होशियार और तजुर्बेकार आदमी था, मगर उसे भी काम करने के मुकाबिले में ‘जी हां’ रटते रहने में ज़्यादा मज़ा आता था। लाला हरनामदास मज़दूरी देन में बहुत हीले-हवाले किया करते थे और अक्सर काट-कपट के भी आदी थे। इसी को वह कारबार का अच्छा उसूल समझते थे।

हरिदास ने कारखाने में पहुँचते ही साफ़ शब्दों कह दिया कि तुम लोगों को मेरे वक़्त में जी लगाकर काम करना होगा। मैं इसी महीन में काम देखकर सब की तरक्की करूँगा। मगर अब टाल-मटोल का गुज़र नहीं, जिन्हें मंजूर न हो वह अपना बोरिया-बिस्तर सम्हालें और फिर दीनानाथ को बुलाकर कहा—भाई साहब, मुझे ख़ूब मालूम है कि आप होशियार और सूझ-बूझ रखनेवाले आदमी हैं। आपने अब तक यहाँ का जो रंग देखा, वही अख़्तियार किया है। लेकिन अब मुझे आपके तजुर्बे और मेहनत की ज़रूरत है। पुराने हिसाबों की जाँच-पड़ताल कीजिए। बाहर से काम मेरा जिम्मा है लेकिन यहाँ का इन्तजाम आपके सुपुर्द है। जो कुछ नफा होगा, उसमें आपका भी हिस्सा होगा। मैं चाहता हूँ कि दादा की अनुपस्थिति में कुछ अच्छा काम करके दिखाऊँ।

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