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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


शहजादी ने नक़ाब की ओट से उसकी तरफ़ ताका और बोली—जो खुद रहम का मुस्तहक हो, वह दूसरों के साथ क्या रहम कर सकता है? क़ैद में तड़पते हुए पंछी से, जिसके न बाल हैं न पर, गाने की उम्मीद रखना बेकार है। मैं जानती हूँ कि कल शाम को दिल्ली के जालिम बादशाह के सामने बाँदियों की तरह हाथ बाँधे खड़ी हूँगी। मेरी इज्ज़त, मेरे रुतबे और मेरी शान का दारोमदार खानदानी इज्ज़त पर नहीं बल्कि मेरी सूरत पर होगा। नसीब का हक़ पूरा हो जायेगा। कौन ऐसा आदमी है जो इस ज़िन्दगी की आरजू रक्खेगा? आह, मुल्तान की शहजादी आज एक जालिम, चालबाज, पापी आदमी की वासना का शिकार बनने पर मजबूर है। जाइए, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए। मैं बदनसीब हूँ, ऐसा न हो कि मेरे साथ आपको भी शाही गुस्से का शिकार बनना पड़े। दिल में कितनी ही बातें हैं मगर क्यों कहूँ, क्या हासिल? इस भेद का भेद बना रहना ही अच्छा है। आपमें सच्ची बहादुरी और खुद्दारी का जौहर है। आप दुनिया में अपना नाम पैदा करेंगे, बड़े-बड़े काम करेंगे, खुदा आपके इरादों में बरकत दे—यही इस आफ़त की मारी हुई औरत की दुआ है। मैं सच्चे दिल से कहती हूँ कि मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। आज मुझे मालूम हुआ कि मुहब्बत बैर से कितनी पाक होती है। वह उस दामन में मुँह छिपाने से भी परहेज नहीं करती जो उसके अजीजों के ख़ून से लिथड़ा हुआ हो। आह यह कम्बख्त दिल उबला पड़ता है। अपने कान बन्द कर लीजिए, वह अपने आपे में नहीं है, उसकी बातें न सुनिए। सिर्फ़ आपसे यही बिनती है कि इस ग़रीब को भूल न जाइएगा। मेरे दिल में उस मीठे सपने की याद हमेशा ताज़ा रहेगी, हरम की क़ैद में यही सपना दिल को तसकीन देता रहेगा, इस सपने को तोड़िए मत। अब खुदा के वास्ते यहाँ से जाइए, ऐसा न हो कि मसरूर आ जाए, वह एक ज़ालिम है। मुझे अंदेशा है कि उसने आपको धोखा दिया, अजब नहीं कि यहीं कहीं छुपा बैठा हो, उससे होथियार रहिएगा। खुदा हाफ़िज!

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