लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


यह सुनते ही सरदार नमकख़ोर की हिम्मतें छूट गयीं। अमीर पुरतदबीर बुढ़ापे की बावजूद अपने वक़्त का एक ही सिपहसालार था। उसका नाम सुनकर बड़े-बड़े बहादुर कानों पर हाथ रख लेते थे। सरदार नमकख़ोर का ख़याल था कि अमीर कहीं एक कोने में बैठे खुदा की इबादत करते होंगे। मगर उनको अपने मुक़ाबिले में देखकर उसके होश उड़ गये कि कहीं ऐसा न हो कि इस बार से हम अपनी सारी जीतें खो बैठें और बरसों की मेहनत पानी फिर जाये। सब की यही सलाह हुई की वापस चलना ही ठीक है। उस वक़्त शेख मख़मूर ने कहा—ऐ सरदार नमकख़ोर! तूने मुल्के जन्नतनिशाँ को छुटकारा दिलाने का बीड़ा उठाया है। क्या इन्हीं हिम्मतों से तेरी आरजूएँ पूरी होंगी? तेरे सरदार और सिपाहियों ने कभी मैदान से क़दम पीछे नहीं हटाया, कभी पीठ नहीं दिखायी, तीरों की बौछार को तुमने पानी की फुहार समझा और बन्दूकों की बाढ़ को फूलों की बहार क्या इन चीजों से इतनी जल्दी तुम्हारा जी भर गया? तुमने यह लड़ाई सल्तनत को बढ़ाने के कमीने इरादे से नहीं छेड़ी है। तुम सच्चाई और इंसाफ़ की लड़ाई लड़ रहे हो। क्या तुम्हारा जोश इतनी जल्द ठंडा हो गया? क्या तुम्हारी इंसाफ़ की तलवार की प्यास इतनी जल्दी बुझ गयी? तुम खूब जानते हो कि इंसाफ़ और सच्चाई की जीत ज़रूर होगी, तुम्हारी इन बहादुरियों का इनाम खुदा के दरबार से ज़रूर मिलेगा? फिर अभी से क्यों हौसले छोड़ देते हो? क्या बात है, अगर अमीर पुरतदबीर बड़ा दिलेर इरादे का पक्का सिपाही है। अगर वह शेर है तो तुम शेर मर्द हो; अगर उसके सिपाही जान पर खेलने वाले हैं तो तुम्हारे सिपाही भी सर कटाने के लिए तैयार हैं। हाथों में तेग़ा मज़बूत पकड़ो और खुदा का नाम लेकर दुश्मन पर टूट पड़ो तुम्हारे तेवर कहे देते हैं कि मैदान तुम्हारा है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book