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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


वह कई गलियों में होती हुई एक टूटे-फूटे गिरे-पड़े मकान के दरवाज़े पर रुकी, ताला खोला और अन्दर चली गयी।

रात को कुछ पूछना ठीक न समझकर मैं लौट आया।

रातभर मेरा जी उसी तरफ़ लगा रहा। एकदम तड़के मैं फिर उस गली में जा पहुँचा। मालूम हुआ वह एक अनाथ विधवा है।

मैंने दरवाज़े पर जाकर पुकारा– देवी, मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ। औरत बाहर निकल आयी– ग़रीबी और बेकसी की जिन्दा तस्वीर मैंने हिचकते हुए कहा– रात आपने फ़क़ीर को…

देवी ने बात काटते हुए कहा– अजी वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था।

मैंने उस देवी के कदमो पर सिर झुका दिया।

– प्रेमचालीसी’ से
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