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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


स्वप्न चल रहा है सूबेदारनी कह रही है–‘मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया था। एक काम कहती हूँ। मेरे तो भाग फूट गये। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है, लायलपुर में जमीन दी है, आज नमकहलाली का मौका आया है। पर सरकार ने हम तीमियों (स्त्रियों) की एक घँघरिया पलटन क्यों न बना दी जो मैं भी सूबेदार जी के साथ चली जाती? एक बेटा है। फौज में भरती हुए उसे एक ही बरस हुआ। उसके पीछे चार और हुए पर एक भी नहीं जिया सूबेदारनी रोने लगी–‘अब दोनों जाते हैं। मेरे भाग! तुम्हें याद है, एक दिन ताँगेवाले का घोड़ा दहीवाले की दूकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे। आप घोड़े की लातों में चले गये थे और मुझे उठाकर दुकान के तख्ते पर खड़ाकर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ।’

रोती-रोती सूबेदारनी ओबरी (अन्दर का घर) में चली गयी। लहना भी आँसू पोंछता हुआ बाहर आया।

‘वज़ीरासिंह पानी पिला–उसने कहा था।’

लहना का सिर अपनी गोद में रखे वज़ीरासिंह बैठा है। जब माँगता है, तब पानी पिला देता है। घंटे तक लहना चुप रहा, फिर बोला–‘कौन? कीरत-सिंह?’

वज़ीरा ने कुछ समझकर कहा–‘हाँ।’

‘भइया, मुझे और ऊँचा कर ले। अपने पट्ट (जाँघ) पर मेरा सिर रख ले।’ वज़ीरा ने वैसे ही किया।

‘हाँ अब ठीक है। पानी पिला दे। बस अब के हाढ़ (आषाढ़) में यह आम खूब फलेगा। चाचा-भतीजा दोनों यहीं बैठकर आम खाना। जितना बड़ा तेरा भतीजा है उतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था, उसी महीने में मैंने इसे लगाया था!’
वज़ीरासिंह के आँसू टप-टप टपक रहे थे।

कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा–फ्रांस और बेल्जियम–६८–वीं सूची–मैदान में घावों से मरा–नं. ७७ सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह।
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