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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


ऐसे बम्बूकार्टवालों के बीच में होकर एक लड़का और एक लड़की चौक की दूकान पर आ मिले। उसके बालों और उसके ढीले सुथने से जान पड़ता था कि दोनों सिख हैं। वह अपने मामा के केश धोने के लिए दही लेने आया था और यह रसोई के लिए बड़ियाँ। दूकानदार एक परदेशी से गुथ रहा था, जो सेर भर गीले पापड़ की गड्डी को गिने बिना हटता न था।

‘तेरे घर कहाँ है?’

‘मगरे में; –और तेरे?’

‘माझे में; –यहाँ कहाँ रहती है?’

‘अतरसिंह के बैठक में, वे मेरे मामा होते हैं।’

‘मैं भी मामा के यहाँ आया हूँ, उनका घर गुरुबाजार में है।’

इतने में दूकानदार निबटा और इनका सौदा देने लगा। सौदा लेकर दोनों साथ-साथ चले। कुछ दूर जाकर लड़के ने मुस्करा कर पूछा–तेरी कुड़माई हो गयी? इस पर लडकी कुछ आँख चढ़ाकर ‘धत’ कहकर दौड़ गई और लड़का मुँह देखता रह गया।

दूसरे-तीसरे दिन सब्जीवाले के यहाँ दूधवाले के यहाँ अकस्मात दोनों मिल जाते। महीना भर यही हाल रहा। दो-तीन बार लड़के ने फिर पूछा, ‘तेरी कुड़माई हो गयी है?’ और उत्तर में वही ‘धत’ मिला। एक दिन अब फिर लड़के ने वैसी ही हँसी में चिढ़ाने के लिए पूछा तो लड़की लड़के की सम्भावना के विरुद्ध बोली–हाँ, हो गयी।

‘कब?’
‘कल, –देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू।’ लड़की भाग गयी।
लड़के ने घर की राह ली। रास्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया एक छावड़ीवाले की दिन भर की कमाई खोयी, एक कुत्ते पर पत्थर मारा और एक गोभी वाले के ठेले में दूध उँड़ेल दिया। सामने नहाकर आती हुई किसी वैष्णवी से टकराकर अँधे की उपाधि पायी। तब कहीं घर पहुँचा।

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