लोगों की राय

कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

121 पाठक हैं

महापुरुषों की जीवनियाँ


इन दो अँग्रेज़ों के क़तल से अँग्रेज़ अधिकारियों के कान खड़े हो गए। उनको संदेह हुआ कि यह उपद्रव शिक्षित वर्ग का उठाया हुआ है। अँगरेज़ी अखबारों ने भी हल्ला मचाना शुरू किया और प्रतिहिंसा के आवेश में ईश्वर जाने, क्या-क्या लिख डाला। किसी ने सलाह दी—हिंदुस्तानी अखबारों की धज्जियाँ उड़ा दो। किसी ने कहा-पूने की ईंट से ईंट बजा दो। भारतीय पत्रों का साहस भी सराहनीय है कि वह सच कहने से न चूके; अँगरेज़ो को खूब तुर्की-बतुर्की जवाब दिया। नतीजा यह हुआ कि सरकार ने कुछ देशभक्तों के रक्त से अपने क्रोध की आग ठंडी की। ऐंग्लो-इंडियन समुदाय ने घी के चिराग़ जलाए, खुशी मनाई और सरकार के प्रति अति कृतज्ञ हुए!

मिस्टर गोखले अभी इंग्लैण्ड में ही थे कि उनके मित्रों ने भारत (बंबई) सरकार के अत्याचार उत्पीड़न के दिल हिला देने वाले विवरण पूने से लिख-लिखकर भेजना आरंभ कर दिये। उनको आशा थी कि आप इंग्लैण्ड में सरकार की इन अनुचित कार्यवाइयों को मशहूर करके उनकी ओर पार्लियामेण्ट का ध्यान खींच सकेंगे। अपने देशवासियों की यह दुर्दशा ऐसे देशभक्त के, जो देश पर तन-मन वार चुका हो—जोश को न उभारे, यह असंभव था। फिर भी आपने बड़े धैर्य और संयम से काम लिया। आप भली भाँति जानते थे कि सरकार पर यह इलजाम लगाने के लिए सबूत जुटाना असंभव हो जाएगा और इन घटनाओं को प्रकट करने के पूर्व आपने बड़े सोच-विचार से काम लिया। पर इसी बीच रैंड और आयर्स्ट की हत्या का भयावना समाचार पहुँचा और उसने ब्रिटिश जनता में अजीब हलचल मचा दी। भारतीयों को दण्ड देने के उपाय सोचे जाने लगे। अफ़वाह उड़ी कि पूने के २५ प्रतिष्ठित और प्रभावशाली जन फाँसी पर लटका दिए जाएँगे। इसी प्रकार के और भी आतंकजनक समाचार, जो सर्वथा निराधार थे, प्रसिद्ध हुए।

अब आपसे ज़ब्त न हो सका और आवश्यक हो गया कि आप भी अपनी आवाज़ उठाएँ। अतः आपने पत्रों के आधार पर जो पूने से आपके मित्रों ने लिखे थे, सरकार की अनुचित कठोरता और अत्याचार की ज़ोरदार शब्दों में घोषणा की और यह साबित करने की कोशिश की कि यह प्रजा का दोष नहीं है कि वह सरकार से विमुख हो रही है, किन्तु सरकार की नासमझी है कि वह उसे दुःख देकर उत्तेजित कर रही है। आपने जो कुछ कहा, वह केवल उन्हीं के पत्रों के आधार पर था। पर तत्कालीन भारत सचिव लार्ड जार्ज हैमिल्टन ने लार्ड सैंडर्स्ट के पत्र के आधार पर आपके बयान और इलज़ामों का खण्डन किया। अब आपके लिए इसके सिवा और कोई उपाय न रहा कि या तो तथ्यों और प्रमाणों से अपने अभियोगों को सिद्ध करें या लज्जापूर्वक उनको वापस लें। अस्तु, आप भारत लौटे, पर इसी बीच बंबई सरकार ने पूने के मुखियों की गिरफ्तारी का हुक्म निकाल दिया था और जब आप अदन पहुँचे, तो उन्हीं खबर देनेवाले मित्रों के पत्र मिले, जिनमें प्रार्थना की गई थी कि हमारे नाम न प्रकट किए जाएँ। गिरफ्तारी के हुक्म ने उन लोगों को इतना भयभीत कर दिया था कि वह क़सम खाने को तैयार थे कि वह पत्र हमारे लिखे हुए न थे। मित्रों के इस तरह धोखा देने और कायरपन दिखाने से उस निर्मल, निष्पाप हृदय को, जो चिन्ता और व्यथा हुई उसका अनुमान करना असंभव है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book