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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


लोकहित में आपका अथक प्रयास देखकर देश फिर आपका भक्त बन गया। दक्षिण के लोगों ने सर्वसम्मति से आपको बंबई कौंसिल की सदस्यता पर प्रतिष्ठित किया। यहाँ आपने ऐसी लगन और एकनिष्ठता से देश की सेवा की कि सबके हृदय में आपके लिए आदर-सम्मान उत्पन्न हो गया। ‘बांबे लैण्ड रेवेन्यु’ (मालगुज़ारी) बिल के सम्बन्ध में जो जोरदार बहसें हुईं, उनमें आपने प्रमुख भाग लिया और सरकार को विश्वास दिला दिया कि गैर सरकरी सदस्य सरकार के कार्यों की टीका विरोध की नीयत से नहीं करते, किन्तु सद्भावमय सहयोग की नीयत से करते हैं। विदेशी सरकारों में सदा रोष रहता है कि उनकी हरेक तजबीज के दो पहलू हुआ करते हैं। सरकार अपने पहलू के हानि-लाभ पर तो विचार कर लेती है, पर गरीब प्रजा के पक्ष की सर्वथा उपेक्षा कर जाती है। आपने सदा सच्चे मन से इसका यत्न किया कि सरकार के सामने आनेवाले प्रत्येक प्रश्न और योजना की प्रजा की दृष्टि से समीक्षा करें और सरकार को उसके अवश्यंभावी परिणाम सुझाएँ, जिसमें वह प्रजा के विचारों और आवश्यकताओं को जानकर उसी भलाई की चिन्ता और उपाय करती रहे।

इन महत्वपूर्ण सेवाओं के कारण आपके प्रशंसकों और भक्तों की परिधि और भी विस्तृत हो गई और आप बंबई की ओर से वाइसराय की कौंसिल के गैर सरकारी सदस्य चुने गए। सार्वजनिक जीवन से दिलचस्पी रखने वाला हर एक आदमी जानता है कि वहाँ आपने अपने कर्तव्यों का पालन कितने परिश्रम, सचाई और जागरुकता के साथ किया। आपकी वक्तृताएँ, खोज, बहुज्ञता, ओजस्विता और साहस भरी भाषा की दृष्टि से अपना जवाब नहीं रखतीं। यूनिवर्सिटी बिल और आफ़ीशल सीक्रेट (सरकारी रहस्य गोपन) बिल के विरोध में आपकी ललकारें अभी तक हमारे कानों में गूँज रही हैं और आशा है कि आपकी ये वक्तृताएँ सदा अपने ढंग की सर्वोत्तम वक्तृताएँ मानी जाएँगी। आपके गर्जन से लार्ड कर्जन जैसे शेर की बोलती बन्द हो जाती थी। इसमें सन्देह नहीं कि बड़ी कौंसिल में आप ही एक योद्धा थे, जिससे लार्ड महोदय आँखें बचाते फिरते थे। आपकी आलोचनाओं पर अक्सर विरोध की नीयत का सन्देह किया गया; पर उसका कारण केवल यह कि लार्ड कर्जन जैसा अभिमानी निरंकुश व्यक्ति अपनी कर्रवाइयों का भांडाफोड़ होना सहन नहीं कर सकता था, इसलिए आपकी नीयत में बुराई दिखाकर अपने दिल का गुबार निकाल लेता था।

आप जैसे विद्वान और बहुज्ञ व्यक्ति से यह बात छिपी नहीं थी कि विदेशी सरकार सदा जनता की सहानुभूति से वंचित और ग़लतफ़हमियों का शिकार बनी रहती है। उसको एक-एक कदम खूब ऊँचा-नीचा देखकर धरना होता है। इसी दृष्टि से आपने कभी सरकार को जनसाधारण की निगाह में गिराने या दोषी बनाने की चेष्टा नहीं की; बल्कि जब कभी मौका मिला, बड़े गर्व से उन बड़े-बड़े लाभों की चर्चा की, जो अँगरेजी राज्य की बदौलत हमें प्राप्त हैं। अंगरेजों की प्रामाणिकता, शुद्ध व्यवहार और नेकनीयती के आप सदा प्रशंसक थे; पर इसके साथ ही उन दोष-त्रुटियों से भी अनभिज्ञ नहीं थे, जो अँगरेजी शासन में मौजूद हैं और जिन्होंने उसको बदनाम कर रखा है। आपका विश्वास था कि यह दोष बदनीयती के कारण ही नहीं है, किन्तु गलत और अनुपयुक्त सिद्धान्तों को काम में लाने के कारण है, और उसका कोई उपाय हो सकता है, तो यही कि भारतवासियों को शिक्षा-संपादन की प्रगति के साथ-साथ राजकाज में भी अधिकाधिक भाग लेने का अवसर दिया जाए। उनकी आवाजें अधिक सहानुभूति के साथ सुनी जाएँ, उनके गुणों तथा योग्यता का आदर अधिक उदारता के साथ किया जाए। उनकी अपनी जिम्मेदारी आप उठाने की योग्यता उत्तरोत्तर बढ़ायी जाए।

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