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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ



श्री गोपालकृष्ण गोखले

भारतीय महापुरुषों में यों तो प्रायः सभी के जीवन चरित्र अतिशय उत्साहवर्धक हैं, पर उस निष्काम देशभक्ति और आत्मत्याग का उदाहरण, जिसने गोपालकृष्ण गोखले को सारे राष्ट्र के लिए गर्व और गौरव की वस्तु बना रखा है, कठिनाई से और कहीं मिल सकता है। इसमें सन्देह नहीं कि देश में आज ऐसी विभूतियाँ विद्यमान हैं, जिनका बुद्धि-वैभव अधिक विशाल है, जिनका पाण्डित्य अधिक गंभीर है, जो पद-प्रतिष्ठा में आपसे बड़े हैं; पर वह सच्चा देश प्रेम जिसके कारण आपने अपने-आपको देश पर निछावर कर दिया है, अपनी विस्तृत गहराई और लगन में बेजोड़ है। आपका जीवन उत्साही युवकों के लिए उच्चाकांक्षा का अनुकरणीय उदाहरण है। आज आपको देश के राजनीतिक मंडलों में बहुत ही ऊँचा पद प्राप्त है। और यह कहने में तनिक भी अत्युक्ति नहीं कि आपके देशवासी आपकी पूजा करते हैं। इसका प्रमाण इससे बढ़कर और क्या हो सकता है कि महात्मा गांधी जैसे पूज्यनीय पुरुष भी आपको गुरु मानते हैं। और इसमें तो शक-शुबहे की गुंजाइश ही नहीं है कि व्यवस्थापिका सभा में आपने जो बड़े-बड़े काम किए हैं वह उसके इतिहास में चिरस्मरणीय रहेंगे।

गोखले का जन्म १८६३ में महाराष्ट्र के कोल्हापुर नगर में हुआ। माँ-बाप अगर निर्धन और अर्थकष्ट में न थे तो किसी प्रकार संपन्न भी न थे। आपने वहीं के स्कूलों मे पढ़कर एफ० ए० पास किया और फिर बम्बई जाकर एलफ़िस्टन कालेज में नाम लिखाया। प्राचीनता और देशोपकार की दृष्टि से यह कालेज भारत के सब कालेजों का सिरमौर है। दादाभाई नौरोजी, सर फ़ीरोजशाह मेहता जैसे राष्ट्रनायकों की शिक्षाशाला होने का गौरव इसी कालेज को प्राप्त है। मिस्टर गोखले की नैसर्गिक प्रतिभा की यहाँ बहुत जल्दी धूम मच गई। विद्यार्थी और अध्यापक सभी आदर की दृष्टि से देखने लगे। गणित से आपको विशेष रुचि थी और कालेज के गणिताध्यापक मिस्टर हाथार्न अपने होनहार शिष्य के बुद्धि-वैभव पर गर्व किया करते थे।

चूँकि आपके माँ-बाप पढ़ाई का ख़र्च न उठा सकते थे, इसलिए यह अत्यावयश्क था कि परीक्षाफल ऐसा हो, जिससे आप छात्रवृत्ति के अधिकारी ठहराए जाएँ और कोई भी आदमी, जो आप और आपके गुणों से परिचित था, आपकी सफलता में रत्ती बराबर भी संदेह न कर सकता था। पर कुछ ऐसे संयोग उपस्थित हुए कि आप सम्मान के साथ बी० ए० की उपाधि न प्राप्त कर सके। इस विफलता से आपको जो दुःख हुआ, उसका अन्दाजा वही अच्छी तरह कर सकता है, जिसकी आशाओं पर इस प्रकार पानी फिर गया हो। अन्त में जीविका की चिन्ता आपको पूना ले गई। यहाँ इंजीनियरिंग कालेज में भरती होने का विचार था जिसके लिए गणित में प्रवीण होने से आप विशेष रूप से उपयुक्त थे। पर सफलता फिर अपना अमंगल-रूप लेकर सामने आई। प्रवेश की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और प्रिंसिपल ने आपको भरती करने में असमर्थता प्रकट की। इस नई विफलता से आपका मन और भी छोटा हो गया। फल मनचाहा होता, तो आप किसी डिवीजन के इंजीनियर हो जाते और धन-वैभव के विचार से आपकी स्थिति कहीं अच्छी होती, मगर आपके हृदय व मस्तिष्क के उच्च गुणों की अभिव्यक्ति जाने किस क्षेत्र में होती। सच तो यह है कि आपके भाग्य में देश और जाति पर निछावर होना लिखा था। आपकी वह विफलताएँ, जो आपकी निजी आकाँक्षाओं की पूर्ति में बाधक हुईं, राष्ट्र के लिए ईश्वर की बहुत बड़ी देन सिद्ध हुईं, भगवान करे, ऐसी विफलताएँ, जिनके शुभ परिणामों पर सहस्रों सफलताएँ ईर्ष्या करें, सबको प्राप्त हों।

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