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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक) करबला (नाटक)प्रेमचन्द
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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।
छठा दृश्य
[प्रातःकाल। शाम का लश्कर। हुर और साद घोड़ों पर सवार फ़ौज का मुआयना कर रहे हैं।]
हुर– अभी तर जियाद ने आपके खत का जबान नहीं दिया?
साद-उसके इंतजार में रात-भर आंखें नहीं लगीं। जब किसी की आहट मिलती थी, तो गुमान होता था कि कासिद है। मुझे तो यकीन है कि अमीर जियाद मेरी तजबीब मंजूर कर लेंगे।
हुर– काश ऐसा होता! अगर जंग की नौबत आई, तो फौज़ के कितने ही सिपाही लड़ने से इनकार कर देगे।
[सामने से शिमर घोड़ा दौड़ाता हुआ आता है।]
साद– लो, कासिद भी आ गया। खुदा करे, अच्छी खबर लाया हो। अरे, यह तो शिमर है।
हुर– हां, शिमर ही है। खुदा खैर करे, जब यह खुद जियाद के पास गया था, तो मुझे आपकी तजबीब के मंजूर होने से बहुत शक है।
शिमर– (करीब आकर) अस्सलामअलेक। मैं कल एक जरूरत से मकान चला गया। अमीर जियाद को खबर हो गई। उसने मुझे बुलाया और आपको यह खत दिया।
[खत साद को देता है। साद खत पढ़कर जेब में रख लेता है, और एक लंबी सांस लेता है।]
साद– शिमर, मैंने समझा था, तुम सुलह की खबर लाते होंगे।
शिमर– आपकी समझ की गलती थी। आपको मालूम है कि अमीर जियाद एक बार फैसला करके फिर उसे नहीं बदलते। अब आपकी क्या मंशा है?
साद– मजबूर हुक्म की तामील करूंगा।
शिमर– तो मैं, फौजों को तैयार होने का हुक्म देता हूं?
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