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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508

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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।


शिमर– क्या आप लोगों की यही मर्जी है कि आज जंग मुल्तवी की जाय?

हुर– यहां जितने असहाय मौजूद है, सब अपनी राएं दे चुके, अमीरे-लश्कर भी चला गया। ऐसी हालात में मुहलत के सिवा और हो ही क्या सकता है। अगर आप अपनी जिम्मेदारी पर जंग करना चाहते हैं, तो शौक से कीजिए।

[हुर, हज्जाज बगैरह भी चले जाते हैं।]

शिमर– (दिल में) कौन कहता है कि हुसैन के साथ दग़ा की गई? यहां सब-के-सब के दोस्त हैं। इस फौ़ज में रहने से कहीं यह बेहतर था कि सब के सब हुसैन की फौज में होते। तब भी उनकी इतनी मदद न कर सकते। मुझे जरा ताज्जुब न होगा, अगर कल सब लोग हथियार रखकर हुसैन के कदमों पर गिर पड़े। जियाद को इस मुहलत की भी इत्तिला तो दे ही दूं।

[साद का क़ासिद मुहलत का पैग़ाम लेकर हुसैन के लश्कर की तरफ जाता है। शिमर अपने खेमे की तरफ़ जाता है।]

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