लोगों की राय

नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

36 पाठक हैं

अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।


हुसैन– ऐ लोगों, कूफ़ा और शाम के दिलेर जवानों और सरदारों! मेरी बात सुनो, जल्दी न करो। मुसलमान अपने भाई की गर्दन पर तलवार चलाने में, जितनी देर करे, ऐन सवाब है। मैं उस वक्त तक खुरेजी नहीं करना चाहता, जब तक तुम्हें इतना न समझा लूं, जितना मुझ पर वाजिब है। मैं खुदा और इंसान दोनों ही के नजदीक इस जंग की जिम्मेदारी से पाक रहना चाहता हूं, जहां भाई की तलवार भाई की गर्दन पर होगी। तुम्हें मालूम है, मैं यहां क्यों आया? क्या मैंने इराक या शाम पर फौजकसी की? मेरे अजीज़, दोस्त और अहलेबैत अगर फौज कहे जा सकते हो, तो बेशक मैंने फौजकसी की। सुनो और इंसाफ करो, अगर तुम्हें खुदा का खौफ और ईमान का लिहाज है कि मैं यहां के झगड़ों से अलग रहकर खुदा की इबादत में अपनी जिंदगी के बचे हुए दिन गुजारूंगा। मगर तुम्हारी ही फरियाद ने मुझे अपने गोशे से निकाला, रसूल की फरियाद सुनकर मैं कानों से उंगली न डाल सका। अगर इस हिमायत की सज़ा क़त्ल है, तो यह सिर हाजिर है, शौक से कत्ल करो। मैं हज्जात से पूछता हूं-क्या तुमने मुझे खत नहीं लिखे थे?

हज्जाज– मैंने आपको कोई खत नहीं लिखा था।

हुसैन– क़ीस, तुम्हें भी खत लिखने से इंकार है?

कीस– मैंने कब आपसे फरियाद की थी?

शिमर– सरासर ग़लत है, झूठ है।

हुसैन– खुदा गवाह है कि मैं अपनी जिंदगी में कभी झूठ नहीं बोला, लेकिन आज यह दाग भी लगा।

कीस– आप यजीद की बैयत क्यों नहीं कर लेते कि इस्लाम हमेशा के लिये फ़ितना और फसाद-पाक हो जाये?

हुसैन– क्या इसके सिवा मसालहत की और कोई सूरत नहीं है?

शिमर– नहीं, और कोई दूसरी सूरत नहीं है।

हुसैन– तो इस शर्त पर सुलह करना मेरे लिये गैरमुमकिन है। खुदा की कसम, मैं जलील होकर तुम्हारे सामने सिर न झुकाऊंगा, और न खौफ़ मुझे यजीद की बैयत कबूल करने पर मजबूर कर सकता है। अब तुम्हें अख्तियार है। हम भी जंग के लिये तैयार हैं।

शिमर– पहला तीर चलाने का सबाब मेरा है।

[हुसैन पर तीर चलाता है।]

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book