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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508

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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।

तीसरा दृश्य

[दोपहर का समय। हजरत हुसैन अब्बास के साथ खेमे के दरवाजे पर खड़े मैदाने-जंग की तरफ ताक रहे हैं।]

हुसैन– कैसे-कैसे जांबाज दोस्त रुखसत हो गए और होते जा रहे हैं। प्यास से कलेजे मुंह को आ रहे हैं, और ये जालिम नमाज तक की मुहलत नहीं देते। आह! जहीर का सा दीनदार उठ गया, मुसलिम बिन ऊसजा इस आलमेजईफ़ी में भी कितने जोश से लड़े। किस-किसका नाम गिनाऊं।

अब्बास-या हजरत, मुझे अंदेशा हो रहा है कि शिमर कोई नया सितम ढाने की तैयारियां कर रहा है। यह देखिए, वह सिपाहियों की एक बड़ी जमैयत लिए इधर चला जाता है।

हबीब– (जोश से) शिमर, खबरदार, अगर इधर एक कदम भी बढ़ाया, तो तेरी लाश पर कुत्ते रोवेगे। तुझे शर्म नहीं आती जालिम कि अहलेबैत के खेमे पर हमला करना चाहता है।

शिमर– हम इस हमले से जंग का फैसला कर देना चाहते हैं। जवानो, तीर बरसाओ।

हुसैन– अफसोस, घोड़े मरे जा रहे हैं। घुटने टेककर बैठ जाओ, और तीरों का जवाब दो। खुदा ही हमारा वाली और हाफ़िज हैं।

शिमर– बढ़ो-बढ़ो, एक आन में फैसला हुआ जाता है।

सिपाही– देखते नहीं हो; हमारी सफ़ें खाली होती जाती हैं! यह तीर हैं। या खुदा का गजब। हम आदमियों से लड़ने आए हैं, देवों से नहीं।

शिमर– लड़कियां जलाओ, फौरन इन खेमों पर आग के अंगारे फेंको, जलते हुए कुंदे फेंको जलाकर स्याह कर दो।

[आग की बारिश होने लगती है। औरतें खेमे से चिल्लाती हुई बाहर निकल आती है।]

जैनब– तुफ् है तुझ पर जालिम, मर्दों से नहीं, औरतों पर अपनी दिलेरी दिखाता है।

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