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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


गरमी के दिन थे। दोपहर को सारा घर सो रहा था; पर जगत की आँखों में नींद न थी। आज उसकी बुरी तरह कुन्दी होगी। इसमें संदेह न था। उसका घर पर रहना ठीक नहीं, दस-पाँच दिन के लिये उसे कहीं खिसक जाना चाहिए। तब तक लोगों का क्रोध शान्त हो जाएगा। लेकिन, कहीं दूर गये बिना काम न चलेगा। बस्ती में कई दिन तक अज्ञातवास नहीं कर सकता। कोई-न-कोई जरूर ही उसका पता दे देगा और वह पकड़ लिया जाएगा। दूर जाने के लिये कुछ-न-कुछ खर्च तो पास होना चाहिए। क्यों न वह लिफाफे में से ए क नोट निकाल ले। यह मालूम ही हो जाएगा कि उसी ने लिफाफा फाड़ा है, फिर एक नोट निकाल लेने में क्या हानि है, दादा के पास रुपये तो हैं ही, झक मार कर दे देगें। यह सोचकर उसने दस रुपये का नोट उड़ा लिया; मगर उसी वक्त उसके मन में एक नई कल्पना का प्रादुर्भाव हुआ। अगर वह ये सब रुपये लेकर किसी दूसरे शहर में कोई दूकान खोल ले, तो बड़ा मजा हो? फिर एक-एक पैसे के लिये क्यों उसे किसी की चोरी करनी पड़े! कुछ दिनों में वह बहुत-सा रुपया जमा करके घर आयेगा, तो लोग कितने चकित हो जायेंगे।

उसने लिफाफे को फिर निकाला। उसमें कुल २00) के नोट थे। दो सौ में दूध की दूकान खूब चल सकती है। आखिर मुरारी की दूकान में दो-चार कढ़ाव और दो-चार पीतल के थालों के सिवा और क्या है? लेकिन कितने ठाट से रहता है। रुपयों की चरस उड़ा देता है। एक-एक दाँव पर दस-दस रुपये रख देता। नफा न होता, तो यह ठाट कहाँ से निभाता आनन्द-कल्पना में वह इतना मग्न हुआ कि उसका मन उसके काबू से बाहर हो गया, जैसे प्रवाह में किसी के पाँव उखड़ जायं और वह लहरों से बह जाय।

उसी दिन शाम को वह बम्बई चल दिया। दूसरे ही दिन मुंशी भक्तसिंह पर गबन का मुकदमा दायर हो गया।

बम्बई के किले के मैदान में बैन्ड बज रहा था और राजपूत रेजिमेन्ट के सजीले सुन्दर जवान कवायद कर रहे थे। जिस प्रकार हवा बादलों को नये-नये रूप में बनाती और बिगाड़ती है, उसी भाँति सेना का नायक सैनिकों को नये-नये रूप में बना-बिगाड़ रहा था।

जब कवायद खत्म हो गई, तो एक छरहरे डील का युवक नायक के सामने आकर खड़ा हो गया। नायक ने पूछा—क्या नाम है? सैनिक ने फौजी सलाम करके कहा—जगतसिंह—

‘क्या चाहते हो?'

‘फौज में भरती कर लीजिए।'

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