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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


एक दिन संध्या समय जब जवाहिर नाँद में खली और भूसा खा रहा था और रामटहल उसके पास खड़े उसकी मक्खियाँ उड़ा रहे थे, एक साधु महात्मा आ कर द्वार पर खड़े हो गये। रामटहल ने अविनयपूर्ण भाव से कहा–यहाँ क्या खड़े हो महाराज, आगे जाओ।

साधु–कुछ नहीं बाबा, इसी बैल को देख रहा हूँ। मैंने ऐसा सुन्दर बैल नहीं देखा।

रामटहल–(ध्यान दे कर) घर ही का बछड़ा है।

साधु–साक्षात् देवरूप है।

यह कह कर महात्मा जी जवाहिर के निकट गये और उसके खुर चूमने लगे।

रामटहल–आपका शुभागमन कहाँ से हुआ? आज यहीं विश्राम कीजिए तो बड़ी दया हो।

साधु–नहीं बाबा, क्षमा करो। मुझे आवश्यक कार्य से रेलगाड़ी पर सवार होना है। रातों-रात चला जाऊँगा। ठहरने से विलम्ब होगा।

रामटहल–तो फिर और कभी दर्शन होंगे?

साधु–हाँ तीर्थ-यात्रा से तीन वर्ष में लौट कर इधर से फिर जाना होगा। तब आपकी इच्छा होगी तो ठहर जाऊँगा। आप बड़े भाग्यशाली पुरुष हैं कि आपको ऐसे देवरूप नंदी की सेवा का अवसर मिल रहा है। इन्हें पशु न समझिए, यह कोई महान् आत्मा हैं। इन्हें कष्ट न दीजिएगा। इन्हें कभी फूल से भी न मारिएगा।

यह कह कर साधु ने फिर जवाहिर के चरणों पर सीस नवाया और चले गये।

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