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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


पंडितजी ने गिड़गिड़ा कर कहा–सरकार, बड़ी दूर से आया हूँ। कई आदमी बीमार पड़े हैं। दवा न मिलेगी, तो मर जाएँगे।

मुँशी ने बिगड़ कर कहा–क्यों सिर खाए जाते हो? कह तो दिया, दवा तैयार नहीं है, और इतनी जल्द तैयार हो सकती है। पंडितजी अत्यंत दीन भाव से बोले–सरकार, ब्राह्मण हूं, आपके बाल-बच्चों को भगवान् चिरंजीवी करें, दया कीजिए। आपका इकबाल चमकता रहे

रिश्वती कर्मचारियों में दया कहाँ! वे तो रुपये के गुलाम हैं। ज्यों-ज्यों पंडितजी उसकी खुशामद करते थे, वह और भी झल्लाता था। अपने जीवन में पंडितजी ने कभी इतनी दीनता न प्रकट की थी। उनके पास इस वक्त एक धेला भी न था। अगर वह जानते कि दवा मिलने में इतनी दिक्कत होगी, तो गाँववालों से ही कुछ माँग-जाँच कर लाए होते। बेचारे हतबुद्धि से खड़े सोच रहे थे कि अब क्या करना चाहिए? सहसा डाक्टर साहब स्वयं बँगले से निकल आए। पंडितजी लपककर उनके पैरों पर गिर पड़े, और करुण स्वर में बोले–दीनबंधु, मेरे घर तीन आदमी ताऊन में पड़े हुए हैं। बड़ा गरीब हूँ सरकार, कोई दवा मिले।

डाक्टर साहब के पास ऐसे गरीब लोग नित्य आया करते थे। उनके चरणों पर किसी का गिर पड़ना, उनके सामने पड़े हुए आर्त्तनाद करना, उनके लिए कुछ नई बातें न थीं अगर इस तरह वह दया करने लगते, तो दया ही भर को होते, यह ठाट-बाट कहाँ से निभता? मगर दिल के चाहे कितने ही बुरे हों, बातें मीठी-मीठी करते थे; पैर हटाकर बोले-रोगी कहाँ है?

पंडित-सरकार, वे तो घर पर हैं। इतनी दूर कैसे लाता?

डाक्टर–रोगी घर हैं, और तुम दवा लेने आया है। कितना मजे का बात है। रोगी को देखे बिना कैसे दवा दे सकता है?

पंडितजी को अपनी भूल मालूम हुई। वास्तव में बिना रोगी को देखे रोग की पहचान कैसे हो सकती है। लेकिन तीन-तीन रोगियों को इतनी दूर लाना आसान न था। अगर गाँववाले उनकी सहायता करते तो डोलियों का प्रबंध हो सकता था। पर वहाँ तो सब-कुछ अपने ही बूते पर करना था, गाँववालों से इसमें सहायता मिलने की कोई आशा न थी। सहायता कि कौन कहे वो तो उनके शत्रु हो रहे थे। उन्हें भय होता था कि यह दुष्ट देवताओं से बैर बढ़ा कर हम लोगों पर न जाने क्या विपत्ति लाएगा। अगर कोई दूसरा आदमी होता, तो वह उसे कब का मार चुके होते। पंडितजी से उन्हें प्रेम हो गया था, इसलिए छोड़ दिया था।

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