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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


प्रभु सेवक–यही कि मशीनों के लिए शीघ्र आर्डर दे दो। जमीन को लेने का इन्होंने निश्चय कर लिया। उसका मौका बहुत पसंद आया। चाहते हैं कि जल्द-से-जल्द बुनियाद पड़ जाए, लेकिन मेरा जी इस काम से घबराता है। मैंने यह व्यवसाय सीखा तो; पर सच पूछो, तो मेरा दिल वहां न लगता था। अपना समय दर्शन, साहित्य, काव्य की सैर में काटता था। वहां के बड़े-बड़े विद्वानों और साहित्य-सेवियों से वार्तालाप करने में जो आनंद मिलता था, वह कारखाने में कहां नसीब था? सच पूछो, तो मैं इसीलिए वहां गया ही था। अब घोर संकट में पड़ा हुआ हूं। अगर इस काम में हाथ नहीं लगाऊं, तो पापा को दुःख होगा, वह समझेंगे कि मेरे हजारों रुपए पानी में गिर गए ! शायद मेरी सूरत से घृणा करने लगें। काम शुरू करता हूं तो भय होता है कि कहीं मेरी बेदिली से लाभ के बदले हानि न हो। मुझे इस काम में जरा भी उत्साह नहीं। मुझे तो रहने को एक झोंपड़ी चाहिए और दर्शन तथा साहित्य का एक अच्छा-सा पुस्तकालय। और किसी वस्तु की इच्छा नहीं रखता। यह लो, दादा को तुम्हारी याद आ गई। जाओ, नहीं तो वह यहां आ पहुंचेंगे और व्यर्थ की बकवास से घंटों समय नष्ट कर देंगे।

सोफ़िया–यह विपत्ति मेरे सिर बुरी पड़ी है। जहां पढ़ने कुछ बैठी कि इनका बुलावा पहुंचा। आजकल ‘उत्पत्ति’ की कथा पढ़वा रहे हैं मुझे एक-एक शब्द पर शंका होती है। कुछ बोलूं, तो बिगड़ जाएं। बिल्कुल बेगार करनी पड़ती है।

मिसेज सेवक बेटी को बुलाने आ रही थीं। अंतिम शब्द उनके कानों में पड़ गए। तिलमिला गई। आकर बोली–बेशक, ईश्वर-ग्रंथ पढ़ना बेगार है, मसीह का नाम लेना पाप है, तुझे तो उस भिखारी अंधे की बातों में आनंद आता है, हिंदुओं के गपोड़े पढ़ने में तेरा जी लगता है; ईश्वर-वाक्य तो मेरे लिए जहर है। खुदा जाने, तेरे दिमाग में यह खब्त कहां से समा गया है। जब देखती हूं, तुझे अपने पवित्र धर्म की निंदा ही करते देखती हूं। तू अपने मन में भले ही समझ ले कि ईश्वर-वाक्य कपोल-कल्पना है, लेकिन अंधे की आंखों में अगर सूर्य का प्रकाश न पहुंचे, तो सूर्य का दोष नहीं, अंधे की आंखों का ही दोष है ! आज तीन-चौथाई दुनिया जिस महात्मा के नाम पर जान देती है, जिस महान आत्मा की अमृत-वाणी आज सारी दुनिया को जीवन प्रदान कर रही है, उससे यदि तेरा मन विमुख हो रहा है, तो यह तेरा दुर्भाग्य है और तेरी दुर्बद्धि है। खुदा तेरे हाल पर रहम करे।

सोफ़िया–महात्मा ईसा के प्रति कभी मेरे मुंह से कोई अनुचित शब्द नहीं निकला। मैं उन्हें धर्म, त्याग और सद्विचार का अवतार समझती हूं ! लेकिन उनके प्रति श्रद्धा रखने का यह आशय नहीं है कि भक्तों ने उनके उपदेशों में जो असंगत बातें भर दी हैं या उनके नाम से जो विभूतियां प्रसिद्ध कर रखी हैं, उन पर भी ईमान लाऊं ! और, यह अनर्थ कुछ प्रभु मसीह ही के साथ नहीं किया गया, संसार के सभी महात्माओं के साथ यही अनर्थ किया गया है।

मिसेज सेवक–तुझे ईश्वर-ग्रंथ के प्रत्येक शब्द पर ईमान लाना पड़ेगा, वरना तू अपनी गणना प्रभु मसीह के भक्तों में नहीं कर सकती।

सोफ़िया–तो मैं मजबूर होकर अपने को उनकी उम्मत से बाहर समझूंगी; क्योंकि बाइबिल के प्रत्येक शब्द पर ईमान लाना मेरे लिए असंभव है !

मिसेज सेवक–तू विधर्मिणी और भ्रष्टा है। प्रभु मसीह तुझे कभी क्षमा न करेंगे !

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