नई पुस्तकें >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
मि. जॉन सेवक ने यहां चमड़े की आढ़त रखी थी। ताहिर अली नाम का एक व्यक्ति उसका गुमाश्ता था बरामदे में बैठा हुआ था। साहब को देखते ही उसने उठकर सलाम किया।
जॉन सेवक ने पूछा–कहिए खां साहब, चमड़े की आमदनी कैसी है?
ताहिर–हुजूर, अभी जैसी होनी चाहिए, वैसी तो नहीं है; मगर उम्मीद है कि आगे अच्छी होगी।
जॉन सेवक–कुछ दौड़ धूप कीजिए, एक जगह बैठे रहने से काम न चलेगा। आस-पास के देहातों में चक्कर कीजिए। मेरा इरादा है कि म्युनिसिपैलिटी के चेयरमैन साहब से मिलकर यहां एक शराब और ताड़ी की दुकान खुलवा दूं। तब आस-पास के चमार यहां रोज आएंगे, और आपको उनसे मेल-जोल करने का मौका मिलेगा। आजकल इन छोटी-छोटी चालों के बगैर काम नहीं चलता। मुझी को देखिए, ऐसा शायद ही कोई दिन जाता होगा, जिस दिन शहर के दो-चार धनी-मानी पुरुषों से मेरी मुलाकात न होती हो। दस हजार की भी एक पालिसी मिल गई, तो कई दिनों की दौड़धूप ठिकाने लग जाती है।
ताहिर–हुजूर, मुझे खुद फिक्र है। क्या जानता नहीं हूं कि मालिक को चार पैसे का नफा न होगा, तो वह यह काम करेगा ही क्यों? मगर हुजूर ने मेरी जो तनख्वाह मुकर्रर की है, उसमें गुजारा नहीं होता। बीस रुपए का तो गल्ला भी काफी नहीं होता, सब जरूरतें अलग। अभी आपसे कुछ कहने की हिम्मत तो नहीं पड़ती; मगर आपसे न कहूं, तो किससे कहूं?
जॉन सेवक–कुछ दिन काम कीजिए, तरक्की होगी न ! कहां है आपका हिसाब-किताब? लाइए, देखूं।
यह कहते हुए जॉन सेवक बरामदे में एक टूटे हुए मोढ़े पर बैठ गए। मिसेज सेवक कुर्सी पर बैठीं। ताहिर अली ने हिसाब बही सामने लाकर रख दी। साहब उसकी जांच करने लगे। दो-चार पन्ने उलट पलटकर देखने के बाद नाक सिकोड़कर बोले–अभी आपको हिसाब-किताब लिखने का सलीका नहीं है, उस पर आप कहते हैं, तरक्की कर दीजिए। हिसाब आइना जैसा होना चाहिए; यहां तो कुछ पता नहीं चलता कि आपने कितना माल खरीदा, और कितना माल रवाना किया। खरीदार को प्रति खाता एक आना दस्तूरी मिलती है, वह कहीं दर्ज ही नहीं है !
ताहिर–क्या उसे भी दर्ज कर दूं?
जॉन सेवक–क्यों, वह मेरी आमदनी नहीं है?
ताहिर–मैंने तो समझा कि वह मेरा हक है।
जॉन सेवक–हरगिज नहीं, मैं आप पर गबन का मामला चला सकता हूं। (त्योरियां बदलकर) मुलाजिमों का हक है ! खूब ! आपका हक तनख्वाह, इसके सिवा आपको कोई हक नहीं है।
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