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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


सूरदास–मिस साहब, अपने पाप सबको आप भोगने पड़ते हैं, भगवान का कोई दोष नहीं।

सोफ़िय–मामा, यह रहस्य समझ में नहीं आता। अगर प्रभु ईसू ने अपने रुधिर से हमारे पापों का प्रायश्चित्त कर दिया, तो फिर ईसाई समान दशा में क्यों नहीं हैं? अन्य मतावलंबियों की भांति हमारी जाति में अमीर-गरीब, अच्छे-बुरे लंगड़े-लूले, सभी तरह के लोग मौजूद हैं। इसका क्या कारण है?

मिसेज सेवक ने अभी कोई उत्तर न दिया था कि सूरदास बोल उठा–मिस साहब, अपने पापों का प्रायश्चित्त हमें आप करना पड़ता है। अगर आज मालूम हो जाए कि किसी ने हमारे पापों का भार अपने सिर ले लिया, तो संसार में अंधेर मच जाए।

मिसेज सेवक–सोफ़ी, बड़े अफसोस की बात है कि इतनी मोटी-सी बात तेरी समझ में नहीं आती, हालांकि रेवरेंड पिम ने स्वयं कई बार तेरी शंका का समाधान किया है।

प्रभु सेवक–(सूरदास से) तुम्हारे विचार में हम लोगों को वैरागी हो जाना चाहिए। क्यों?

सूरदास–हां जब तक हम वैरागी न होंगे, दु:ख से नहीं बच सकते।

जॉन सेवक–शरीर में भभूत मलकर भीख मांगना स्वयं सबसे बड़ा दु:ख है; यह हमें दु:खों से क्योंकर मुक्त कर सकता है?

सूरदास–साहब, वैरागी होने के लिए भभूत लगाने और भीख मांगने की जरूरत नहीं। हमारे महात्माओं ने तो भभूत लगाने और जटा बढ़ाने को पाखंड बताया है। वैराग तो मन से होता है। संसार में रहे, पर संसार का होकर न रहे। इसी को वैराग कहते हैं।

मिसेस सेवक–हिंदुओं ने ये बातें यूनान के Stoics से सीखी हैं; किंतु यह नहीं समझते कि इनको व्यवहार में लाना कितना कठिन है। यह हो ही नहीं सकता कि आदमी पर दु:ख-सुख का असर न पड़े। इसी अंधे को अगर इस वक्त पैसे न मिलें, तो दिल में हज़ारों गालियाँ देगा।

जॉन सेवक–हां, इसे कुछ मत दो, देखो, क्या कहता है। अगर जरा भी भुनभुनाया, तो हंटर से बातें करूंगा। सारा वैराग भूल जाएगा। मांगता है भीख, धेले-धेले के लिए मीलों कुत्तों की तरह दौड़ता है, उस पर दावा यह है कि वैरागी हूं। (कोचवान से) गाड़ी फेरो, क्लब होते हुए बंगले चलो।

सोफ़िया–मामा, कुछ तो जरूर दे दो, बेचारा आशा लगाकर इतनी दूर दौड़ा आया था।

प्रभु सेवक–ओहो, मुझे तो पैसे भुनाने की याद ही न रही।

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