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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है

मनाने की कोशिशें

दूसरे साल राव मालदेव ने अपने राज्य में दौरा करना शुरू किया और घूमते हुए अजमेर जा पहुंचे। वहां कुछ दिनों तक किले में उनका कयाम रहा जो किसी जमाने में बीसलदेव और पृथ्वीराज जैसे प्रतापी महाराजों के स्वर्ण सिंहासन से सुशोभित होता था। राव जी को इस किले पर राज करने का बहुत गर्व था। एक रोज इतराकर अपनी चौहानी रानियों से कहने लगे– ‘‘इसे खूब अच्छी तरह देख लो। यह तुम्हारे बुजुर्गों की राजधानी है।’’

चौहान रानियों को यह व्यंग्यात्मक वाक्य बहुत बुरा लगा। राव जी राठौर थे। भला चौहान किसी राठौर की जबान से ऐसी बात सुनकर क्योंकर जब्त कर सकता? दोनों खानदानों में शादी-ब्याह होता था मगर वह पुरानी शत्रुता दिलों में साफ न हुई थीं। चुनांचे मियां– बीबी में भी बहुत बार आपस में कड़ी-कड़ी बातों की नौबत आ जाती थी।

रानियों ने जवाब दिया– ‘‘आप हमारे मालिक हैं, हम आपके मुंह नहीं लग सकते। मगर हमारे बड़े जैसे थे, उन्हें आपके बड़े ही खूब जानते होंगे।’’

यह जवाब राव जी के सीने में तीर की तरह लगा क्योंकि वह रानी संयोगिता और पृथ्वीराज के स्वयंवर की तरफ इशारा था। गुस्से में भरे हुए रनिवास से बाहर निकल आए। उस वक्त काली-काली घटाएं छाई हुई थीं, कुछ बूदें पड़ रही थीं। बाहर निकलते ही उन्होंने आवाज दी, कौन हाजिर हैं?

ईश्वरदास चारण ने आगे बढ़कर मुजरा किया और बोला– ‘‘हुजूर खैरंदेश हाजिर है।’’

राव जी– ‘‘अभी आप जागते हैं? मुझे अन्दर नींद नहीं आयी, जरा कोई कहानी तो कहो। मैं यहीं लेटूंगा, ठण्डी हवा है, शायद नींद आ जाए।’’

ईश्वरदास– ‘‘जो आज्ञा। बैठिए।’’

राव जी बैठ गए और ईश्वरदास कहानी कहने लगा। कहानी के बीच में उसने यह दोहा पढ़ा-

मारवाड़ नर नारी जैसलमेर

तोरी तो सिधां निरां करमल बीकानेर।

यानी मारवाड़ में मर्द, जैसलमेर में औरतें, सिंध में घोड़े और बीकानेर में ऊंट अच्छे होते हैं।

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