नई पुस्तकें >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
सौतिया डाह
ईश्वरदास ने अजमेर के हाकिम और किलेदार से लड़ाई की तैयारियों का इन्तजाम करने के लिए कहा। इसी बीच जोधपुर से सरूपदेई और दूसरी रानियों ने उसके पास एक बड़ी रिश्वत भेजी और प्रार्थना की कि जिस तरह मुमकिन हो इस बला को वहीं रहने दो, वह किसी तरह जोधपुर न आने पाए। अजमेर से चलते वक्त हमने आपसे यही बात कही थी और अब तक आपने इस बात का ख्याल भी रखा है। अब भी तुम्हारे ही रोके रुक सकती है। दूसरा उसे कोई नहीं रोक सकता। आप राव जी को समझाइए कि ऐसा हरगिज न करें। हम इस इनायत के लिए आपके बहुत एहसानमंद होंगे। चारण जी रिश्वत पाकर निन्यानवे के फेर में पड गए। कहां तो रोज तैयारी की बहुत ताकीद करते थे कहां अब ढीले पड़ गए और तैयारी में भी देर होने लगी।
एक और गुल खिला। हुमायूं शेरशाह से शिकस्त खाकर सिंध भाग गया था, उसने जब यह सुना कि राव जी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं तो उनके पास अपना एक दूत यह संदेश देकर भेजा कि आप अकेले शेरशाह से हरगिज मत लड़िएगा। मैं भी आपका साथ देने को आ रहा हूं। हम दोनों मिलकर उसे हराएंगे। इस मदद के बदले में आपको गुजरात फतेह करवा दूंगा। राव जी ने यह बात मान ली और बादशाह को लिखा कि आप जैसलमेर होकर तशरीफ लाइएगा। वहां वाले हमारे रिश्तेदार हैं। वह आपका जरूर साथ देंगे। उधर ईश्वरदास को ताकीद की– रानी को लेकर जल्द आओ, हम तुम्हें कुछ जरूरी काम के लिए रावल जी के पास जैसलमेर भेजेंगे। राव जी का इरादा था कि इस तरह हुमायूं की मदद करके उसे तख्त पर बिठा दें और उसके नाम से सारा देश अपने आधीन कर लें।
ईश्वरदास ने इस आवश्यक कर्त्तव्यों को पूरा करने में अपना ज्यादा फायदा देखा। जल्द हाकिम शहर और किलेदार से सवारी का इंतजाम करा लिया और रूठी रानी को बड़ी शान के साथ जोधपुर रवाना कर दिया। दूसरी रानियों ने जब यह खबर सुनी तो हाथ-पैर फूल गए कि अब यह बला आ पहुंची। नहीं मालूम इसके पास क्या जादू है कि राव जी इसके बात न पूछने पर भी खुशामद में लगे रहते हैं। अब उसे किला सौंपकर आप लड़ने जाएंगे। खूब, औरत क्या है जादू की पुड़िया है। भला जब किला उसके इशारे पर चलेगा तो हमारी जिन्दगी दूभर कर देगी। हमसे उसकी हुकूमत बर्दाश्त न होगी। उसमें क्या सुर्खाब के पर लगे है कि किला उसको सौंपा जा रहा है। वह जादूगरनी है। जादूगरनी ने साठ कोस से भी वह मन्तर मारा कि जिसका उतार नहीं। जालिम दगाबाज ईश्वरदास भी अपनी तरफ आकर फिर उधर हो गया।
एक खवास ने रानी की यह बातचीत सुनकर कहा कि ईश्वरदास फूट गया तो क्या हुआ, उसका चाचा आसा जी तो यहीं मौजूद हैं, उससे काम लीजिए। वह ईश्वरदास से बहुत ज्यादा होशियार है। रानियों को यह सलाह पसंद आई। झाली रानी ने उसी खवास को आसा जी के पास भेजा और कहलवाया कि तुम्हारा भतीजा वहां बैठे-बैठे बड़ी बेइन्साफी कर रहा है, हमें अब आपके सिवा कोई दूसरा नजर नहीं आता। आप ही हमारा काम कर सकते हैं। किसी तरह इस बला को रोकिए वर्ना हम कहीं के न रहेंगे। आसा जी ने आकर कहा– ‘‘वह नालायक मेरे कहने में नहीं है, और जो हुक्म हो उसे बजा लाऊं।’’
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