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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है

शादी

दिन ढल गया। बाजार में छिड़काव हो गया। लोग बारात देखने के लिए घरों से उमड़े चले आते हैं। ज्योतिषी ने दरबार में जाकर राव से कहा– ‘‘अब अगवानी करने का समय पास आ गया है। अब सवारी की तैयारी का हुक्म दीजिए।’’

रावल– ‘‘बहुत अच्छा। बारात वालों को भी इसकी खबर कर दो।’’

ज्योतिषी– ‘‘हाँ, खूब याद आया, एक बात मुझे मारवाड़ के ज्योतिषियों से पूछनी है।’’

रावल– ‘‘क्या?’’

ज्योतिषी– ‘‘जन्मपत्री से तो नहीं, पर बोलते नाम से राव जी को आज चौथा चन्द्रमा और आठवां सूरज है।’’

रावल– ‘‘तो इससे क्या, मुहूर्त तो आपने जन्मपत्री से ही निकाला है।’’

ज्योतिषी– ‘‘महाराज पुकारने के नाम से भी ग्रह देखे जाते हैं। चौथा चन्द्रमा और आठवां सूरज अशगुन होता है। कोई ग्रह बारहवां नहीं है, तो...’’

रावल (जी में) क्या अच्छा होता जो कोई बारहवां ग्रह भी होता ताकि तीनों असगुन एक जगह हो जाते। (प्रकट) मारवाड़ बड़ा राज्य है। वहां ज्योतिषियों की कमी नहीं है। उन्होंने जरूर सब बातों को विचार लिया होगा। आप कुछ न कहिएगा नहीं तो उन्हें खामखाह शक हो जाएगा।

ज्योतिषी– ‘‘उन्हें सचेत कर देना मेरा धर्म है। मैं आपके खानदान का हित चाहने वाला हूं। मैं अभी जाकर उनसे कहता हूं कि विपत्ति को काटने की कोई युक्ति कीजिए।’’

रावल– क्या युक्ति हो सकती है?’’

ज्योतिषी– ‘‘यही दान-पुण्य आदि।’’

रावल– ‘‘यह सब मैं अपनी तरफ से करा दूंगा। उनसे कहने की क्या जरूरत है।’’

ज्योतिषी– ‘‘नहीं, यह दान उन्हीं की तरफ से होना चाहिए।’’

रावल– ‘‘क्या मेरी तरफ से होने में कुछ बुराई है?’’

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