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रूठी रानी (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :278
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8610

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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है


झाली रानी सरूपदेई की बद्दुआ भी आखिरकार रंग लाई। उस वक्त तो चन्द्रसेन जोधपुर का राव हो गया मगर बाद को जब अकबर ने मालदेव के मरने की खबर पाकर मारवाड़ पर फौज़ें भेजीं तो कुमार राम, रायमल और उदयसिंह तीनों शाही फौज से आ मिले जिसका नतीजा यह हुआ कि संवत् १६२२ विक्रमी में चन्द्रसेन ने जोधपुर खाली कर दिया। अकबर ने उस मुल्क को सोलह बरस अपने हाथ में रखकर संवत् १६४० में उदयसिंह के हवाले कर दिया। उसकी सन्तानें अब तक जोधपुर पर राज करती हैं। चन्द्रसेन के पोते कर्मसेन को जहांगीर ने अजमेर के इलाके में भनाए का परगना दिया था। उसकी औलाद अब तक वहां है। इस तरह रूठी रानी की कहानी पूरी हुई। वह नहीं है मगर उसका नाम आज साढ़े तीन सौ साल गुजर जाने पर भी ज्यों का त्यों बना हुआ है।

मारवाड़ के कवीश्वरों ने उमा देई की तारीफ में जो कुछ लिखा है, वह इतना पुरअसर और पुरदर्द है कि उसे पढ़कर आज भी रोना आता है और दिल उमड़ आता है। अगर इस वक्त सती होने की रस्म नहीं है मगर उन कविताओं और गीतों को पढ़कर उस समय का करुण दृश्य आंखों के सामने आ जाता है। आसा जी चारण, जिसने एक दोहा पढ़कर उमा देई को हमेशा के लिए पति से अलग कर दिया था, उस वक्त एक मौजे में भारीली और बाघा के साथ रहता था। जब उसने रूठी रानी के सती होने की खबर पायी तो बोला-ऐ उमा देई, तुझे धन्य है। तूने कहा था आखिरी दम तक मेरा मान रह जाए तब तारीफ करना। जैसा तूने कहा था, कर दिखाया। तेरे साहस और तेरे स्वाभिमान को बार-बार धन्य है।

आसाजी ने उसी वक्त चौदह बंदों की एक कविता लिखी और इसकी नकलें सारे राजपूताने में भिजवायी क्योंकि उसने वादा किया था कि अगर मैं तुम्हारे बाद तक जिन्दा रहा तो तुम्हारे नाम को अमर बना जाऊंगा। बात के पक्के ने अपने वायदे को पूरा किया।

वह पद आज तक मारवाड़ के बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं और जब तक इन पदों को पढ़ने वाली बाकी रहेंगे, रूठी रानी का नाम रौशन रहेगा।

समाप्त

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