लोगों की राय

कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8624

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

430 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ


गोदावरी को जिस बात का पूर्ण विश्वास और पण्डितजी को जिसका बड़ा भय था, वह न हुई। घर के काम-काज में कोई विघ्न-बाधा, कोई रुकावट न पड़ी। हाँ, अनुभव न होने के कारण पण्डितजी का प्रबन्ध गोदावरी के प्रबंध जैसा अच्छा न था। कुछ खर्च ज्यादा पड़ जाता था। हाँ, गोदावरी को गोमती के सभी काम दोषपूर्ण दिखाई देते। ईर्ष्या में अग्नि है, परन्तु अग्नि का गुण उसमें नहीं। वह हृदय को फैलाने के बदले और भी संकीर्ण कर देती है। अब घर में कुछ हानि हो जाने से गोदावरी को दु:ख के बदले आनन्द होता। बरसात के दिन थे। कई दिन तक सूर्यनारायण के दर्शन न हुए। संदूक में रक्खे हुए कपड़ों में फफूँदी लग गई। तेल के अचार बिगड़ गए। गोदावरी को यह सब देखकर रत्ती भर भी दुख न हुआ। हाँ, दो-चार जली-कटी सुनाने का अवसर उसे अवश्य मिल गया। मालकिन ही बनना आता है कि मालकिन का काम करना भी!

पण्डित देवदत्त की प्रकृति में भी अब नया रंग नजर आने लगा। जब तक गोदावरी अपनी कार्यपरायणता से घर का सारा बोझ सँभाले थी, तब तक उनको कभी किसी चीज की कमी नहीं खली। यहाँ तक कि शाक-भाजी के लिए भी उन्हें बाजार नहीं जाना पड़ा, पर अब गोदावरी उन्हें दिन में कई बार बाजार दौड़ते देखती। गृहस्थी का ठीक प्रबन्ध न रहने से बहुधा जरूरी चीजों के लिए उन्हें बाजार ऐन वक्त पर जाना पड़ता। गोदावरी यह कौतुक देखती और सुना-सुनाकर कहती– यही महाराज हैं कि एक तिनका उठाने के लिए भी न उठते थे। अब देखती हूँ, दिन में दस दफे बाजार में खड़े रहते हैं। अब मैं इन्हें कभी यह कहते नहीं सुनती कि मेरे लिखने-पढ़ने में हर्ज होगा।

गोदावरी को इस बात का एक बार परिचय मिल चुका था कि पण्डितजी बाजार-हाट के काम में कुशल नहीं हैं। इसलिए जब उसे कपड़े की जरूरत होती, तब वह अपने पड़ोस के एक बूढ़े लाला साहब से मँगवाया करती थी। पण्डितजी को यह बात भूल-सी गई थी कि गोदावरी को साड़ियों की जरूरत पड़ती है। उनके सिर से तो जितना बोझ कोई हटा दे, उतना ही अच्छा था। खुद वे भी वही कपड़े पहनते थे, जो गोदावरी उन्हें मँगाकर देती थी। पण्डितजी को नए फैशन और नमूने से कोई प्रयोजन न था। पर अब कपड़ों के लिए भी उन्हीं को बाजार जाना पड़ता है। एक बार गोमती के पास साड़ियाँ न थीं। पण्डितजी बाजार गये, तो एक बहुत अच्छा-सा जोड़ा उसके लिए ले आए। बजाज ने मनमाने दाम लिये। उधार सौदा लाने में पण्डितजी जरा भी आगा-पीछा न करते थे। गोमती ने वह जोड़ा गोदावरी को दिखाया। गोदावरी ने देखा और मुँह फेरकर वह रुखाई से बोली– भला, तुमने उन्हें कपड़े लाने तो सिखा दिए। मुझे तो सोलह वर्ष बीत गए, उनके हाथ का लाया हुआ एक कपड़ा स्वप्न में भी पहनना नसीब न हुआ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai