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सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


विश्वे– एक हज़ार गाँठ में रख कर जो कुछ जी में आये, करना।

जागे.– मैं गरीब आदमी हज़ार रुपये कहाँ से लाऊँगा; पर कभी– कभी भगवान दीनों में दयालु हो जाते हैं।

विश्वे.– मैं इस डर से बिल नहीं खोद रहा हूँ।

रामेश्वरराय तो चुप ही रहा पर जागेश्वर इतना क्षमाशील न था। वकील से बातचीत की। वह अब आधी नहीं; पूरी ज़मीन पर दाँत लगाये हुए था।

मृत सिद्धेश्वरीराय के एक लड़की तपेश्वरी थी। अपने जीवन– काल में वे उसका विवाह कर चुके थे। उसे कुछ मालूम ही न था कि बाप ने क्या छोड़ा और किसने लिया। क्रिया– कर्म अच्छी तरह हो गया; वह इसी में खुश थी। षोडशी में आयी थी। फिर ससुराल चली गयी। तीन वर्ष हो गये, न किसी ने बुलाया, न वह मौके आयी। ससुराल की दशा भी अच्छी न थी। पति का देहांत हो चुका था। लड़के भी अल्प वेतन पर नौकर थे। जागेश्वर ने अपनी फूफी को उभारना शुरू किया। वह उसी को मुद्दई बनाना चाहता था।

तपेश्वरी ने कहा– बेटा, मुझे भगवान ने जो दिया, है उसी में मगन हूँ। मुझे जगह– ज़मीन न चाहिए। मेरे पास अदालत करने को धन नहीं है।

जागे.– रुपये मैं लाऊँगा, तुम खाली दावा कर दो।

तपेश्वरी– भैया तुम्हें लड़ाकर किसी काम का न रक्खेंगे।

जागे.– यह नहीं देखा जाता कि वे जायदाद ले कर मजे उड़ावें और हम मुँह ताकें। मैं अदालत का खर्च दे दूँगा। इस ज़मीन के पीछे बिक जाऊँगा पर उनका गला न छोड़ूँगा।

तपेश्वरी– अगर ज़मीन मिल भी गयी तो तुम अपने रुपयों के एवज में ले लोगे, मेरे हाथ क्या लगेगा? मैं भाई से क्यों बुरी बनूँ?

जागे.– ज़मीन आप ले लीजिएगा, मैं केवल चाचा साहब का घमंड तोड़ना चाहता हूँ।

तपेश्वरी.– अच्छा जाओ, मेरी तरफ से दावा कर दो।

जागेश्वर ने सोचा, जब चाचा साहब की मुट्ठी से ज़मीन निकल जायेगी तब मैं दस– पाँच रुपये साल पर इनसे ले लूँगा। इन्हें अभी कौड़ी नहीं मिलती। जो कुछ मिलेगा, उसी को बहुत समझेंगी। दूसरे दिन दावा कर दिया। मुंसिफ के इलजाम में मुकदमा पेश हुआ। विश्वेश्वरराय ने सिद्ध किया कि तपेश्वरी सिद्धेश्वरराय की कन्या ही नहीं है।

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