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सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


बतासे लिए और दौड़ी हुई घर आयी। पूजा का सामान तैयार हो गया, तो उसने बालक को गोद में उठाया और दूसरे हाथ में पूजा की थाली लिये मंदिर की ओर चली।

मन्दिर में आरती का घंटा बज रहा था। दस– पाँच भक्तजन खड़े स्तुति कर रहे थे। इतने में सुखिया जाकर मन्दिर के सामने खड़ी हो गयी।

पुजारी ने पूछा क्या है रे? क्या करने आयी है?

सुखिया चबूतरे पर आकर बोली– ठाकुर जी की मनौती की थी महाराज पूजा करने आयी हूँ।

पुजारी जी दिन भर जमींदार के असामियों की पूजा किया करते थे और शाम – सबेरे ठाकुर जी की। रात को मन्दिर ही में सोते थे, मन्दिर ही में आपका भोजन भी बनता था, जिससे ठाकुरद्वारे की सारी अस्तरकारी काली पड़ गयी थी। स्वभाव के बड़े दयालु थे, निष्ठावान इतने थे कि चाहे कितनी ही ठंड पड़े कितनी ही ठंडी हवा चले, बिना स्नान किये मुँह में पानी तक न डालते थे। अगर इस पर भी उनके हाथों और पैरों में मैल की मोटी तह जमी हुई थी, तो इसमें उनका कोई दोष न था! बोले– तो क्या भीतर चली आयेगी। हो तो चुकी पूजा। यहा आकर भरभ्रष्ट करेगी।

एक भक्तजन ने कहा– ठाकुर जी को पवित्र करने आयी है?

सुखिया ने बड़ी दीनता से कहा– ठाकुर जी के चरन छूने आयी हूँ सरकार! पूजा की सब सामग्री लाई हूँ।

पुजारी– कैसी बेसमझी की बात करती है रे, कुछ पगली तो नहीं हो गयी है। भला तू ठाकुर जी को कैसे छुएगी?

सुखिया को अब तक कभी ठाकुरद्वारे में आने का मौका न मिला था। आश्चर्य से बोली– सरकार वह तो संसार के मालिक हैं। उनके दरसन से तो पापी भी तर जाता है, मेरे छूने से उन्हें कैसे छूत लग जायेगी?

पुजारी– अरे तू चमारिन है कि नहीं रे?

सुखिया– तो क्या भगवान ने चमारों को नहीं सिरजा है? चमारों का भगवान और कोई है? इस बच्चे की मनौती है सरकार!

इस पर वही भक्त महोदय, जो अब स्तुति समाप्त कर चुके थे, डपटकर बोले– मार के भगा दो चुड़ैल को। भरभ्रष्ट करने आयी है, फेंक दो थाली– वाली। संसार में तो आप ही आग लगी हुई है, चमार भी ठाकुर जी की पूजा करने लगेंगे, तो पिरथी रहेगी कि रसातल को चली जाएगी।

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