लोगों की राय

नई पुस्तकें >> सोज़े वतन (कहानी-संग्रह)

सोज़े वतन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8640

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

304 पाठक हैं

सोज़े वतन यानी देश का दर्द…


तन्मय हो रहा था कि फिर मुझे बहुत से आदमियों की बोलचाल सुनायी पड़ी और कुछ लोग हाथों में पातल के कमंडल लिये शिव, हर गंगे गंगे, नारायण-नारायण कहते हुए दिखायी दिये। मेरे दिल ने फिर गुदगुदाया, यह तो मेरे देश प्यारे देश की बातें हैं। मारे खुशी के दिल बाग़ बाग़ हो गया। मैं इन आदमियों के साथ हो लिया और एक दो तीन चार पाँच छः मील पहाड़ी रास्ता पार करने के बाद हम उस नदी के किनारे पहुँचे जिसका नाम पवित्र है, जिसकी लहरों में डुबकी लगाना और जिसकी गोद में मरना हर हिन्दू सबसे बड़ा पुण्य समझता है। गंगा मेरे प्यारे गाँव से छः—सात मील पर बहती थीं और किसी ज़माने में सुबह के वक़्त घोड़े पर चढ़कर गंगामाता के दर्शन को आया करता था। उनके दर्शन की कामना मेरे दिल में हमेशा थी। यहाँ मैंने हज़ारों आदमियों को इस सर्द, ठिठुरते हुए पानी में डुबकी लगाते देखा। कुछ लोग बालू पर बैठे गायत्री मंत्र जप रहे थे। कुछ लोग हवन करने में लगे हुए थे। कुछ लोग माथे पर टीके लगा रहे थे। कुछ और लोग वेदमंत्र सस्वर पढ़ रहे थे। मेरे दिल ने फिर गुदगुदाया और मैं ज़ोर से कह उठा हां-हां, यही मेरा देश है, यही मेरा प्यारा वतन है, यही मेरा भारत है। और इसी के दर्शन की, इसी की मिट्टी में मिल जाने की आरजू मेरे दिल में थी।

मैं खुशी में पागल हो रहा था। मैंने अपना पुराना कोट और पतलून उतार फेंका और जाकर गंगा माता की गोद में गिर पड़ा, जैसे कोई नासमझ, भोला-भाला बच्चा दिन भर पराये लोगों के साथ रहने के बाद शाम को अपनी प्यारी मां की गोद में दौड़कर चला आये, उसकी छाती से चिपट जाये। हां, अब अपने देश में हूँ। वह मेरा प्यारा वतन है, यह लोग मेरे भाई हैं, गंगा मेरी माता हैं।

मैंने ठीक गंगाजी के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी बनवा ली है और अब मुझे सिवाय रामनाम जपने के और कोई काम नहीं। मैं रोज़ शाम-सबेरे गंगा-स्नान करता हूँ और यह मेरी लालसा है कि इसी जगह मेरा दम निकले और मेरी हड्डियाँ गंगामाता की लहरों की भेंट चढ़ें।

मेरे लड़के और मेरी बीवी मुझे बार-बार बुलाते हैं मगर अब मैं यह गंगा का किनारा और यह प्यारा देश छोड़कर वहां नहीं जा सकता। मैं अपनी मिट्टी गंगाजी को सौपूँगा। अब दुनिया की कोई इच्छा, कोई आकांक्षा मुझे यहाँ से नहीं हटा सकती क्योंकि यह मेरा प्यारा देश, मेरी प्यारी मातृभूमि है और मेरी लालसा है कि मैं अपने देश में मरूँ।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai