| कविता संग्रह >> अंतस का संगीत अंतस का संगीतअंसार कम्बरी
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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ
 भाषा को सरल, सुबोध और भाव-प्रवण बनाने के लिये कहीं-कहीं मुहावरों का भी सटीक प्रयोग किया गया है-
 बहुधा छोटी वस्तु भी, संकट का हल होय।
 डूबन हारे के लिये, तिनका सम्बल होय।।
 
 तत्सम और तद्भव का यह मिश्रित प्रयोग स्पष्ट करता है कि कवि केवल भावों का आग्रही है। इसीलिये वह ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जो मन के भावों को सहजता के साथ अभिव्यक्त कर सकें, इसी प्रकार की सरल भाषा मैं गूढ़ार्थ पिरोने की कला में माहिर है कवि। देखिये- 
 मन से जो भी भेंट दे, उसका करो कुबूल।
 काँटा मिले बबूल का, या गूलर का फूल।।
 
 फूल तो सभी कुबूल कर सकते हैं, लेकिन काँटा कुबूल करने वाले कम ही होते हैं। कवि को मन से दिया गया काँटा भी कुबूल है। काँटा अवरोध या पीड़ा का प्रतीक है और गूलर का फूल झूठे आश्वासन का प्रतीक है। कवि के कहने का आशय है कि यदि कोई अपना बनकर प्रेम से पीड़ा या झूठे आश्वासन भी देता है तो कुबूल करना चाहिये।
 
 कवि का मन अनीति और अन्याय का विरोधी होता है। वह समाज के दीन-दुखियों के पक्ष में खड़ा होता है। जनतंत्र का पक्षधर तो है लेकिन जनतंत्र का ढोंग उसे रुचता नहीं है:-
 कुर्सी की खातिर रचें, नेतागण षड्यंत्र।
 तानाशाही नीतियाँ, काहे का जनतंत्र।।
 
 कवि को यह बात भी अच्छी नहीं लगती कि हर क्षेत्र में अतिक्रमण करने पर शरण पाने वालों को शासन और प्रशासन की ओर से बेघर कर दिया जाए-
 सारी नगरी रौंदते, बुलडोजर के पाँव।
 दाना-पानी उठ गया, लौट चलो अब गाँव।।
 			
		  			
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