लोगों की राय

कविता संग्रह >> अंतस का संगीत

अंतस का संगीत

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9545

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

397 पाठक हैं

मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ

अंतस का संगीत

हिन्दी काव्य-मंचों पर अंसार क़म्बरी को बड़ी चाहत के साथ सुना जाता है। हिन्दी की भावभंगिमा के साथ उर्दू की पाठन-शैली उनकी रचनाओं को अत्यंत प्रभावोत्पादक बना देती है। उस पर भी भाषा की सहजता ने उनकी रचनाओं को एक अनोखापन दिया है, जिससे प्रभावित हुए बिना रहा नहीं जा सकता। विशेष बात यह है कि मंच के सफल कवि होने के कारण उनकी रचनाओं में समसामयिक संदर्भों की अभिव्यक्ति तो है ही, मानव-जीवन के शाश्वत मूल्यों को भी रेखांकित किया गया है।

अंसार भाई से मेरी अंतरंगता लगभग डेढ़-दो दशक से है। हम लोग एक-दूसरे को जानते तो उससे भी पहले से थे, लेकिन--एक-दूसरे के कृतित्व और व्यक्तित्व को जानने का सुयोग शाहजहाँपुर के एक काव्य-मंच से बना। मैं इसे सुयोग इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि एक ही शहर में रह कर भी हम दोनों का परिचय इसके पहले मंच पर कविता सुनने-सुनाने और औपचारिक दुआ बंदगी तक ही सीमित था। सुयोग इसलिये भी मानता हूँ कि इसके बिना मैं शायद एक अच्छे कवि और अच्छे व्यक्ति की मित्रता से वंचित रह जाता। मेरी समझ में किसी अच्छे व्यक्ति से परिचित होना सौभाग्य की बात है उस पर भी वह अच्छा कवि भी हो तो 'सोने में सुहागा' वाली बात चरितार्थ होती है। 'रहिमन भाग सराहिये, भले लोग मिलि जांय' और यह सुयोग उस दिन बना। हुआ यूँ कि मुझे शायद मोहम्मदी, खीरी के कवि-सम्मेलन से लौटते हुए अगले दिन शाहजहाँपुर पहुँचना था, सो मैं जल्दी ही वहाँ पहुँच गया। लेकिन वहाँ की व्यवस्था और आयोजकों के व्यवहार से मुझे क्षुब्ध होना पड़ा। पता नहीं क्यों, मेरे मन में आया कि मुझे यहाँ रुकना नहीं चाहिये। अत: शाम को कार्यक्रम प्रारम्भ होने से पहले ही मैं कानपुर लौटने के लिये स्टेशन पहुँच गया। आयोजन-समिति के लोगों को पता चला तो वे भी मेरे पीछे-पीछे स्टेशन पहुंच गए। उन्होंने खेद प्रकट करते हुए लौट चलने का आग्रह किया। लेकिन मैं लौटना नहीं चाहता था। वहीं अंसार भाई भी मिल गए। उन्होंने भी लौट चलने का आग्रह किया और मेरी अटैची साधिकार जीप में, जो शायद कवियों को लेने के लिये स्टेशन भेजी गर्ड थी, रख ली। मैं उनका आग्रह टाल नहीं सका और उन्हीं के साथ लौट आया। काव्य-पाठ भी किया। उस दिन श्रोताओं की सर्वाधिक प्रशंसा पाने वाले कवियों में- गीत-कवि के रूप में अंसार भाई और ओज-कवि के रूप में स्वयं मैं था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai