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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं

।। श्री राम शरणं मम।।

अनुसार

आज के युग का मानव एवं समाज उत्तरोत्तर दिग्मूढ़ होकर मूल्यहीनता के गम्भीर गर्त में गिरता जा रहा है। 'स्वार्थ' का दानव अपना विकराल मुँह फैलाए - मनुष्य की सुख-शांति को निगलता जा रहा है। हम पाश्चात्य देशों की भौतिक उन्नति-समृद्धि की चकाचौंध से प्रभावित होकर भोगवादी संस्कृति में अपनी अनुरक्ति बढा रहे हैं। भूमण्डलीकरण और बाजारवाद के इस दौर में मनुष्य स्वयं एक वस्तु बन गया है। त्याग, समर्पण, परहित, प्रेम, आदर्श एवं नैतिकता जैसे शब्द आज शब्दकोष तक सीमित होते जा रहे हैं, और सत्य यह है कि मानवीय मूल्य ही आदर्श मानव समाज के विकास और प्रगति के मूल आधार हैं।

श्रीराम का चरित्र और श्रीराम की कथा ही इनका अक्षय कोष है जो हमें सुदृढ़ एवं सुसंस्कृत बनाती है। भारतीय संस्कृति एवं समाज के विकास में रामकथा का अप्रतिम योगदान रहा है। रामकथा की लोकप्रियता सर्वविदित है। भारत ही नहीं, विश्व के अनेक देशों में शताब्दियों से रामकथा का प्रचार-प्रसार होता रहा है।

युग तुलसी स्वनामधन्य परम पूज्य श्रीरामकिंकर जी महाराज श्रीरामचरितमानस के सर्वमान्य, सर्वोपरि विद्वान् हैं। ''रामकथा के प्रति उनकी अपनी दर्शन-दृष्टि है, जो विलक्षण है। परम पूज्य महाराज श्री ने जो मूल्यपरक चिंतन दिया है, उसके द्वारा राष्ट्र एवं समाज का हित तो होगा ही, उनके विचारों के आलोक से समाज को एक नई प्रेरणा, गति एवं स्फूर्ति भी मिलेगी। परम पूज्य महाराजश्री के साहित्य का अनुवाद गुजराती, मराठी, उड़िया और अग्रेंजी भाषा में तो हो ही चुका है, अन्य अनेक भाषाओं में भी कार्य प्रगति पर है।

परम पूज्य महाराजश्री के साहित्य पर निरंतर अनुशीलन अत्यन्त आवश्यक है। अनेक विद्यार्थियों ने पी एचडी. और डी लिट् की उपाधि प्राप्त कर ली है और इस कार्य की महत्ता और गुणवत्ता समझकर मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में शोधपीठ की स्थापना हो रही है।

स्वार्थ और परमार्थ दोनों की प्राप्ति कराने वाला संतुलित चिंतन व्यक्ति की कामना पूर्ति का मार्ग बनाते हुए, राष्ट्रहित ओर समाज का कल्याण कैसे हो, ऐसा विलक्षण जीवन दर्शन परम पूज्य महाराजश्री ने प्रदान किया है।

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