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पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597

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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


कर्फ्यू


शहर की
कर्फ्यूग्रस्त सड़क पे-
दौड़ते दिखते हैं
अधनंगे, गंदे बच्चे
दूर, बूटों की आवाज़ से
सहमते हैं
भूखे बच्चे,
उल्टे पाँव घर लौट कर
देहरी पे-
सहमी-ख़ामोश बैठी
मां का
आँचल खींचते हैं,
पास बैठा बाप
जैसे, उनका कोई नहीं।

तोतली जुबान से
पूछते हैं-
'अम्मा, बप्पा अब क्यों नहीं
लेने जाते रोटी?'
गली के उस छोर से
उठता शोर
एक बार फिर
अम्मा, बप्पा और बच्चे का
मरियल स्वर
खा जाता है।

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