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पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597

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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


लहरें पुकारती हैं !


समुन्दर किनारे खड़ा
मैं,
कुछ पल खोया रहा
लहरों की
अठखेलियों में
फिर,
उन्हें करीब से देखने
और
उन जैसा होने की चाह साधे
लहरों के साथ-साथ चलता
अब,
मैं
दूर-समुन्दर
आ पहुँचा हूँ
लेकिन
लहरें-
दूर और दूर
चंचलता से ठिठोली करतीं
दौड़ी जा रही हैं।

अब,
जहाँ मैं आ खड़ा हूँ-
दूर तक साम्राज्य है
अथाह जल का।
सागर की गर्त में डूबने से बचने,
लहरों से बतियाने
और
वापस लौटने की
कश्मकश में फँसा मैं
ख़ामोश खड़ा हूँ।

और
लहरें
अब भी क्रीड़ारत हैं
अविराम,
कभी नागिन सी बल खाती,
फेना उगलती,
कभी
मोतियों के सैलाब सा भ्रम देती हुईं।
और
समुन्दर,
खामोशी से ओढ़े हैं
मर्यादा की चादर !

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