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पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597

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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


वसुन्धरा


मुझे
तुमसे कोई शिकायत नहीं है
'वसुन्धरा'
कि तुम
आकाश नहीं हो पाईं
अब तक
क्योंकि-
मैं भी तो
नहीं बदल सका
अपना स्वरूप।

मैं, अक्सर महसूसता हूँ
अपने
आकाश होने का दर्द
और-
मर्यादित सीमाएँ
फिर भी-
मन के कोने से
अक्सर फड़फड़ाकर उठती है
इक हूक सी
कि आखिर क्यों
नहीं बदल जाता
धरती और आकाश होने का अर्थ!

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