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पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597

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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


हवा गवाह है


नहीं फटी
धरती,
न ही टूटा आसमान
जब,
मंदिर पे-
लाश बना दिया गया
'राम',
मस्जिद पे-
क़त्ल हुआ
'मोहम्मद',
गिरजा पे ही
टँगी मिली
'मरियम' की नंगी लाश,
गुरुद्वारे पे-
माथा टेकते सो गया
'गोविन्द',
और
लाल होता रहा
सरोवर का 'अमृत',
देखते रहे टकटकी लगाए
धरती / आकाश / मन्दिर / मस्जिद / गुरुद्वारा
और
कोठी वाले ‘धर्मात्मा’।

बोलता रहा
अकेला ही
छत के नीचे
चिरनिद्रा में पड़ी
माँ को
सोया समझकर
तोतली जुबान से
आक्रोश में जगाता
घुटनों के बल रेंगता
अधनंगा बच्चा।

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