लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> बृहस्पतिवार व्रत कथा

बृहस्पतिवार व्रत कथा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :28
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9684

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

175 पाठक हैं

बृहस्पतिदेव की प्रसन्नता हेतु व्रत की विधि, कथा एवं आरती

व्रत की कथा

भारत में किसी समय एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह उसकी रानी को अच्छा न लगता। न वह व्रत करती और न ही किसी को एक पैसा दान में देती। राजा को भी ऐसा करने से मना किया करती। एक समय की बात है कि राजा शिकार खेलने वन को चले गए। घर पर रानी और दासी थी। उस समय गुरु बृहस्पति साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए। साधु ने रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी, “हे साधु महाराज। मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूँ। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे यह सारा धन नष्ट हो जाये और मैं आराम से रह सकूं।”

साधु रूपी बृहस्पति देव ने कहा, “हे देवी। तुम बड़ी विचित्र हो। संतान और धन से भी कोई दुखी होता है, अगर तुम्हारे पास धन अधिक है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें।”

परन्तु साधु की इन बातों से रानी खुश नहीं हुई। उसने कहा, “मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं, जिसे मैं दान दूं तथा जिसको संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाये। ”

साधु ने कहा, यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना। बृहस्पतिवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना, केशों को धोकर स्नान करना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहाँ धुलने डालना। इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जायेगा। इतना कहकर साधु बने बृहस्पतिदेव अंतर्धान हो गये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai